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________________ योगशास्त्र. श्रघाती कर्मोनो क्ष्य थवाथी मोद थाय . त्रणे जुवनोमां देव, दानव, तथा राजाउंने जे सुख मले बे, ते सुख, मोदसुख पागल अनंतमे जागे पण नथी, ते मोदमां आत्मखन्नावथी उत्पन्न थएवँ अतींजिय, तथा शाश्वतुं सुख , तेथी तेने (मोदने ) चार वर्गोमा अग्रेसर कहेलो . एवी रीते मोदतत्वनुं स्वरूप कडुं. हवे ज्ञान पांच प्रकारना. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, अने केवलज्ञान अवग्रह तथा वह्वादि नेदोवाधं तथा इंजिय अने मनथी उत्पन्न यतुं मतिज्ञान कहेलु बे. पूर्व, अंगोपांग, तथा प्रकरणोथी विस्तार पामेलु तथा स्याछादवालु घणा प्रकारनुं श्रुतज्ञान कहेलुं . देव अने नारकीने नव प्रत्येनुं अवधिज्ञान होय , अने बाकीनी गतिर्जमां क्षयोपशमना लक्षणवाएं प्रकारचें अवधिज्ञान होय . जुमति विपुलमति ए बे प्रकारचें मनःपर्यवज्ञान बे, तेमां रुजुमति अविशुद्ध अने पडी जाय तेवु ने, अने विपुलमति ते विशुद्ध अने न पडे तेवू . तथा सघला अव्य पर्यायने जाणनारु, विश्वमां लोचनसमान, अनंत, एक तथा अतींजिय, एवं केवलज्ञान ले. एवी रीतें पांच ज्ञानथी जाणेलो ने तत्वोनो समूह जेणें ते, मोदना हेतुरूप जेरत्नत्रय, तेना पेहेला नेदने जाणनारोकहेवाय.नवरूपी वृदने उखेडी नाखवामां मदोन्मत्त हाथी समान, तथा मूर्खतारूपी अंधकारने हणवामां सूर्यसमान, तथा जगत्नां तत्वने प्रकाशवामां वीजां नेत्र समान, तथा इंजियरूपी हरिणने बांधवामां जाल सरखं ज्ञान . रुचिर्जिनोक्ततत्वेषु, सम्यक्प्रधानमुच्यते॥ जायते तन्निसर्गेण गुरोरधिगमेन वा ॥१७॥ अर्थः हवे बीजा रत्ननुं स्वरूप कहे बे, जिनेश्वरें कहेला तत्वोमांजे रुचि थवी, ते सम्यग्दर्शन कहेवाय, ते स्वाभाविक रीते अथवा, गुरुनी सहायताथी थाय , टीका- उपर कहेलां जिनेश्वर नाषेलां जीवादिक तत्वोमां जे रुचि थवी ते श्रझान कहेवाय ते रुचिविना ज्ञान,फलनी सिजिवायूँ थतुं नथी; कारण के शाक अन्न आदिकना खरूपने जाणनारने पण रुचिविना तेना
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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