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________________ ४४ योगशास्त्र. युक्त एल बे; नखोनी शोजा जेमनी एवा, तथा दिव्य पुष्पोना समूहोथी जराइ गयेल बे, परिषदा जेमनी एवा, तथा उंची डोकीवालां - रणीयांथी पीवायेलो बे, मधुर शब्द जेमनो एवा, तथा शांत थएल बे, परस्पर वैर जेमनां, एवा हाथी सिंह विगेरेथी उपाश्रित rea बे, नजदिकनो जाग जेमनो एवा, तथा समवसरणमां वेठेला, तथा सघला अतिशयोयें करीने युक्त एवा, तथा केवल ज्ञानथी युक्त एवा, परमात्मा अरिहंत प्रजुनां श्रालंबनथी जे ध्यान धरतुं ते रूपस्थ ध्यानकदेवाय बे. 1 हवे ऋण श्लोकोयें करीने प्रकारांतरथी रूपस्थ ध्येयनुं स्वरूप कहे . रागद्वेषमहामोह, विकारैरकलंकितं ॥ शांतं कांतं मनोहारि, सर्वलक्षणलक्षितं ॥ ८ ॥ तीर्थकैरपरिज्ञात, योगमुधामनोरमं ॥ अणोरमंदमानंद, निःस्यंदं दददद्भुतं ॥ ए ॥ जिनेंऽप्रतिमारूप, मपि निर्मलमानसः ॥ निर्निमेषदृशा ध्यायन्, रूपस्यध्यानवान् भवेत् ॥ १० ॥ ॥ त्रिनिर्विशेषकं ॥ अर्थः- राग द्वेष ने मोहना विकारथी कलंकरहित घरलुं, शांत, तेजखी, मनोहर, सर्व लक्षणें करीने युक्त, अन्य तीर्थियोयें नथी जाणेली एवी योगमुद्रायें करीने मनोहर, आंखोने अत्यंत आनंद, श्रापनाएं, एवं जिनेंद्रनी प्रतिमारूप ध्यानने निर्मल मनथी ने अनिमेष दृष्टी ध्यावतां कां, रूपस्थ ध्यानवालो प्राणी थाय बे. तथा, योगी चाज्यासयोगेन, तन्मयत्वमुपागतः ॥ सर्वज्ञीनूतमात्मान, मवलोकयति स्फुटं ॥ ११ ॥ अर्थ :- यारों करीने तन्मयपणाने प्राप्त थलो योगी पोताने सर्वज्ञरूप थलो प्रगटरीतें जुए बे- तथा, सर्वज्ञोभगवान् योय, महमेवास्मिसध्रुवं ॥ एवं तन्मयतां यातः, सर्ववेदीति मन्यते ॥ १२ ॥
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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