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________________ ४१० योगशास्त्र. नेक्ष्यते वामबादुश्चेत्, पुत्रदारयस्तदा ॥ यदि दक्षिणबादुर्ने, क्ष्यते भ्रातृदयस्तदा ॥१३॥ अर्थः- वली ते वखते जो डाबो हाथ न देखाय, तो पुत्र अने स्त्रीनो नाश थाय, तथा जो जमणो हाथ न देखाय, तो नाश्योनो नाश थाय. तथा, अदृष्टे हृदये मृत्यु, रुदरे च धनदयः॥ गुह्ये पितृविनाशस्तु, व्याधिरुरुयुगे नवेत् ॥ १६ ॥ अर्थः- वली ते वखते जो हृदय न देखाय, तो मृत्यु थाय, अने उदर न देखाय, तो धननो दय थाय, तथा जो गुह्यस्थान न देखाय, तो . पितृनो नाश थाय, श्रने जो बन्ने साथलो न देखाय, तो व्याधि थाय, अदर्शने पादयोश्च, विदेशगमनं भवेत् ॥ अदृश्यमाने सर्वांगे, सद्यो मरणमादिशेत् ॥ २६५॥ अर्थः- बन्ने पगो न देखाय, तो परदेश जवानुं थाय, तथा जो सर्व अंग न देखाय, तो तुरत मरण थाय. हवे वती बीजा प्रकारथी एटले शकुनथी कालज्ञान कहे . अदिश्चिककृम्याखु, गृहगोधापिपीलिकाः॥ यूकामत्कुणलूताश्च, वाल्मिकोऽथोपदेहिका ॥ २६६ ॥ कीटिका घृतवर्णाश्च, भ्रमर्यश्च यदाधिकाः॥ ' नवेगकलहव्याधि, मरणानि तदा दिशेत् ॥ १६॥युग्म।। अर्थः-सर्प, वीबी, कृमी, उंदर, गीलोडी, कीडी, जु, मांकड, करोलीया, वल्मीक, उधर, घीमेल, अने चमरीयो जो अधिक देखाय, तो उठेग, कलह अने मृत्यु थाय. तथा, जपानचादनबत्र, शस्त्रबायांगकुंतलान् ॥ चंच्चा चुंबेद्यदाकाक, स्तदाऽसन्नैव पंचता ॥ १६ ॥ अर्थः- जो कागडो, पगरखां, वाहन, बत्र, हथियार, बाया, अंग, थने वालने पोतानी चांचथी चुंबन करे, तो मृत्यु नजदीक , एम जाणवू, तथा,
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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