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________________ पंचमप्रकाश. ४०३ नेत्रश्रोत्रशिरोनेदात्, सच त्रिविधलदाणः॥ निरीयः सूर्यमाश्रित्य, यथेष्टमपरः पुनः॥११॥ अर्थः- ते काल सूर्यने आश्रिने, नेत्र, कर्ण, अने मस्तकना नेदधी त्रण प्रकारनो जोवो, अने ते त्रण नेदश्री बीजो काल श्याप्रमाणे जोवो. हवे तेमांथी नेत्रनुं लक्षण कहे . वामे तत्रेदणे पगं, षोमशबदमैंदवं ॥ जानीयाद्नावनीयं तु, दक्षिणे घादशहदं ॥ १०॥ अर्थः- त्यां डाबी आंखमां शोल पत्रनुं चंकमल जाणवं, तथा जमणी आंखमां बार पत्रनुं नाव. खद्योतद्युतिवर्णानि, चत्वारि बदनानि तु ॥ प्रत्येकं तत्र दृश्यानि स्वांगुलीविनिपीडनात् ॥११॥ अर्थः- हवे ते प्रत्येक बन्ने कमलोमां (गुरूपदेशथी) पोतानी श्रांगुदीथी दाबवावडे करीने खद्योतनां रंगनां चार पत्रो जोवां. सोमाधोभ्रलतापांग, घ्राणांतिकदलेषु तु॥ दले नष्टे.क्रमान्मृत्युः, षत्रियुग्मैकमासतः॥ १२॥ अर्थः- चंड कमलना नीचेना नागमां पत्रो न देखाते बते मासे मृत्यु थाय,श्रने भ्रूकुटीनी समीपे जो न देखाय, तो त्रण मासे मृत्यु थाय तथा अपांगनी समीपे जो न देखाय, तो बे मासे मृत्यु थाय तथा जो ना. सिकानी समीपमां न देखाय, तो एक मासें मृत्यु थाय तथा; अयमेवक्रमः पझे, नानवीये यदा भवेत् ॥ दशपंचत्रिधिदिनैः, क्रमान्मृत्यु स्तदा नवेत् ॥ १३॥ अर्थः- आवीज रीतनो क्रम जो सूर्यकमलमां थाय, तो अनुक्रमें, दश, पांच, त्रण अने बे दिवसें मृत्यु थाय. एतान्यपीड्यमानानि, ध्योरपिदि पद्मयोः॥ दलानि यदि वीदयंते मृत्युर्दिनशतात्तदा ॥१२॥ अर्थः- आंगलीथी दाब्या विना जो बन्ने पद्मनां पत्रो देखाय, तो एकसो दिवसोमा मृत्यु थाय.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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