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________________ चतुर्थप्रकाश. ३६ए श्क तलाव खुबु होय, अने तेमांजेम चारेबाजुयेथी पाणी जराय बे. अने जो श्राडी पाल बांधी होय, तो तेमां पाणी जरातुं नथी; अथवा जेम एक वहाणमां बिज पड्यु होय, अने तेमांथी जेम पाणी जराय बे, पण जो ते बिछने बुरी लीधुं होय, तो तेमां पाणी प्रवेश करी शकतुं नथी. तेम योगादिक आश्रवधारोने जे रोक्यां होय, तो संवरे करीने मनोहर थएला एवा था श्रात्मामां कर्मरूपी अव्यनो प्रवेश थतो नथी. संवरथी श्रावधारोनो निरोध थाय , थने ते संवर दांति आदिक घणा गुपोयें करीने युक्त . मिथ्यात्वना अनुदयनी उत्तरे मिथ्यात्वसंवर होय बे; तेम देशविरति आदिकमां अविरति संवर होय, अने अप्रमत्त तथा संयत श्रादिक गुणस्थानोमां प्रमादनो संवर मानेलो के अने प्रशांत दीपमोहादिकमां कषायनो संवर होय, अने अयोगी, केवलीमा तो संपूर्णरीते योगोनो संवर होय. हवे निर्जरा जावनानुं खरूप कहे . संसारवीजनूतानां, कर्मणां जरणादिद। निर्जरा सा स्मृता धा, सकामा कामवर्जिता ॥६॥ अर्थः- चतुर्गतिरूप संसारनां वीजजूत कोंने जीर्ण करनारी, ते निर्जरा जाणवी; तेना वे नेदो; एक तो कंश पण अनिलाषयुक्त ते सकामनिर्जरा, अने वीजी कोपण जातना अनिलाष विनानी, ते काम निर्जरा. एवी रीतें वे प्रकारनी निर्जरा जाणवी. हवे ते वन्ने प्रकारनी निर्जरा कहे . ज्ञेया सकामा यमिना, मकामा त्वन्यदेहिनां ॥ कर्मणां फलवत्पाको, यजपायात्स्वतोऽपिच ॥७॥ अर्थः- सकाम निर्जरा मुनिजनी जाणवी, अने अन्य जीवोनी श्रकाम निर्जरा जाणवी; केम के कर्मोनो पाक पण फलनी पेठे बे प्रकारनो ये एक उपायथी, अने बीजो पोतानी मेले; अर्थात् जेम वृदोनां फलोने घास थादिकथी ढांकीने, अथवा वृदोपरज पकाववामां आवे जे.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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