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________________ योगशास्त्र. श्रवक्रपणुं अने शील पालवं, इत्यादि पुरुषवेदनां श्राश्रवो जाणवां, स्त्री पुरुषोनुं अत्यंत उग्रपणे कामसेवन, कषायोनी तीव्रता, तथा व्रतनुं नांगवू, ए नपुंसकवेदनां श्रवो जाणवां. साधुनी निंदा, धर्मिने विन्न करवापणुं, विरतिने अविरति कडेवा तथा तेने अंतराराय करवो. अचारित्रियाना गुणो बोलवा, चारित्रीनां दूषणो बोलवां, तथा कषाय अने नोकषायोनी उदीरणा करवी, ए सा. मान्य रीतें चारित्र मोहनीनां आश्रवो जाणवां. __पंचेंजिय प्राणीउनो वध, बहु प्रारंज, परिग्रह, निर्दयपुं, मांसजें जोजन, स्थिरवैरपणुं, रौजध्यान, मिथ्यात्व, अनंतानुबंधि कषाय, कृष्ण, नील, अने कापोत लेश्या, जूळ नाषण, परधननी चोरी, वारंवार मैथुनसेवन, तथा अवशेजियपणुं, जियो वश न राखवी एटलां नरकनां श्रायुष्यनां श्राश्रवो जाणवां. ___ जूग मार्गनी देशना, सन्मार्गनो नाश, मूढचित्तपणुं, धार्तध्यान शल्यपएं, कपट, आरंज, परिग्रह अतिचार सहित शीलवत, नील अने कापोत लेश्या, तथा अप्रत्याख्यानी कषायो, तेउने तिर्यंच आयुष्यनां श्राश्राश्रवो जाणवां.. अल्प परिग्रह श्रने आरंज, सहज कोमलता भने आर्जवपणुं कापोत अने पीत लेश्या, धर्मध्यानमां अनुराग प्रत्याख्यानी कषाय, मध्यम परिणाम, संविनागर्नु करवापणुं देवगुरुर्नु पूजन, मिष्ठ वचन, तथा लोकयात्रामां मध्यस्थपणुं ए मनुष्यनां आश्रवो जाणवां, सरागसंयम, देशसंयम, अकामनिर्जरा उत्तम मित्रनी सोबत, धर्मश्रवण, शीयल, सुपात्रे दान, तप, श्रद्धा, रत्नत्रयनु अविराधनपणुं, मृत्यु वखते पद्म श्रने पीत लेश्याना परिणाम; तथा अज्ञान तप, ए देवनां श्रायुष्यनां आश्रवां जाणवां. ___ मन, वचन अने कायार्नु वक्रपणुं, परने उगवं, कपट, मिथ्यात्व, चुगली, चलचित्तपणुं, सुवर्ण आदिकमां नेलसेल करवी, जूठी सादी, वर्णादिकमां जेलसेल, तीव्र कषायपणुं इत्यादि अशुजनां श्राश्रवो ले. संसारथी नीरुपएं, प्रमादनी हानि, सनाव, शांतियादिक गुणो, धी उने आदरसत्कार विगेरे तीर्थकर नामकर्मने उपार्जन करनारामाश्रवो.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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