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________________ चतुर्यप्रकाश. ३६५ लिंगरूप नव नोकषाय स्पर्शादिक इंद्रियोना विषयो, मन, वचन, अने कायाना योग, तथा श्रज्ञान, संशय, विपर्यय, राग, द्वेष, स्मृतिचंश, धर्मनो अनादर, दुःप्रणिधान, ए आठ प्रकारनो प्रमाद, अविरतिपणुं, मिथ्यात्व तथा याने रौद्रध्यान, एटलां वानां अशुभ कर्मोनां हेतु बे. ज्ञान ने दर्शननो तथा तेना हेतुनो नाश, आशातना, मत्सर विगेरे करवाथी ज्ञानावरणी तथा दर्शनावरणी कर्मोंनो याश्रव थाय बे देवपूजा, गुरुसेवा, सुपात्रदान, दया, क्षमा, सरागसंयम, देशसंयम, कामनिर्जरा, शौच, तथा बालतप, ए सद्वेधना श्राश्रवो जाणवा. दुःख, शोक, वध, ताप, आक्रंदन, परिदेवन, ते पोताने अने परने पसद्यना वो जाणवा. वीतराग, आगम, संघ, धर्म, तथा सर्व देवोना श्रवर्णवाद, तीव्र मिथ्यात्वनुं परिणाम, सर्वज्ञ, सिद्ध, धार्मिक विगेरेनां दूषण बोलवां, उन्मार्गनी देशना देवी, असंयतिने पूजवा, वगर विचार्य काम कर तथा गुरु यादिकनुं अपमान कर, इत्यादि दृष्टिमोदर्ना वो कहेलां. कषायना उदयश्री आत्मानो जे तीव्र परिणाम थाय बे. तेने चारित्र मोहनीयनो श्रव कहेलो बे. कामयुक्त तथा हांसीनां वचनो, बहु बकवुं, दैन्यताश्री शब्द करवो, विगेरे हास्यना श्राश्रवो जावा. देशांतरो जोवानुं उत्सुकपएं, चित्र, नाटक दिक जोवां, परनां चित्तने वश कर, विगेरे रतिना आश्रवो जाणवा. देखा, पापाचरण, परनां सुखनो नाश करवो, विगेरे रतिनां श्रश्रवो जाएवां. पोताने जयनो परिणाम थवो, परने पण जय पमाडवो तथा निर्दयप राख, ए जयनां श्रवो जाणवां. परने दिल गिरि उपजाववी, तथा पोताने दिल गिरि श्रवाथी रडकुं, इत्यादि शोकनां श्रवो जाणवां चतुर्विध संघनो वर्णवाद बोली जुगुप्सा करवी, इत्यादि जुगुप्सानां श्राश्रवो जाणवतं. ईर्ष्या, विषयोमां श्रासक्तपणुं, मृषावाद, वक्रपणुं, परस्त्रीनी इवा, इत्यादि स्त्रीवेदनां श्रवो जाणवां. पोतानीज स्त्रीथी संतोषी रहेवुं, ईर्ष्या नहीं करवी, कषायनुं मंदपणं
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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