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________________ तृतीयप्रकाश. महावीरं " कहेतां महावीर प्रजुने हुँ " शिरसा" कहेतां मस्तकें करीने “वंदे" कहेतां नमस्कार करुं बु. एवी रीतें स्तुति करीने, परोपकार माटे, तथा पोताना जावनी वृछिमाटे फल देखाडवापूर्वक पाठ नणे . इकोवि नमुक्कारो, जिपवर वसदस्स वक्ष्माणस्स ॥ संसारसागरान, तारेइ नरंव नारी वा॥ " जिणवरवसहस्स वझमाणस्स” कहेतां षनदेव प्रजु, तथा वर्धमान प्रजुने करेलो, “ इकोविनमुक्कारो” केहतां एकज नमस्कार, “ नरंव नारीवा” पुरुष अथवा स्त्रीने “संसार सागरा कहेतां संसाररूपी समुथी " तारे "कहेतां तारे . हवे उपर शिवाय बीजी पण स्तुति केटलाको बोले , ते नीचे प्रमाणे जाणवी. जतिसेलसिहरे, दिकानाणं निसिदिया जस्स ॥ तं धम्मचक्कवहि, अरिहनेमि नमसामि॥ चत्तारिअन्दसदो, अवंदिआ जिणवरा चनवीसं॥ परमहनिम्हिा , सिझा सिम्मिम दिसंतु॥ “ उडतसेलसिहरे" केहेतां गिरनार पर्वतना शिखरपर " जस्स" केहेतां जेनां " दिका, नाणं, निसिहिया ” दीक्षाकल्याणक, ज्ञानकट्याणक, तथा मोदकल्याणक थएलां बे;" तं धम्मचकवहिं ” कहेतां धर्मना चक्रवर्ति एवा ते “अरिहनेमि” केहेतां अरिष्टनेमिने “ नमसामि” कहेता हुं नमस्कार करुं बु. तथा अष्टापद पर्वतपर रहेला चार, श्राप, दस, अने बे, एम मली चोवीशे जिनेश्वरोने मे वांद्या, तथा एवा सिझ प्रजुठ मने पण सिद्धि श्रापो ? त्यार पड़ी नीचे प्रमाणे पाठ बोलवो. "वेयावञ्चगराणं, संतिगराणं, सम्मदिवि समाहिगराणं,करेमि काउस्सगं" ___“ वेयावच्चगराणं " केहेता, प्रवचननी वैयावच्च करनारा, तथा “संतिगराणं" कहेतां शांतिना करनारा, तथा सम्मदिहिसमाहिगराणं" केहतां सम्यग्दृष्टिमां समाधि करनारा, एवो गोमुख यद तथा अप्रति
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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