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________________ तृतीयप्रकाश. शएएँ वरा" केतां चोवीसे जिनेश्वरो, तथा “ तित्थयरा” केतां तीर्थंकरो, "भे पसीयंतु " केतां मारापर प्रसाद करो ? " कित्तिय" केतां में तेमनी स्तुति करी; “वंदिय” केतां में तेमने वांद्या, “महिया" केतां में तेमने पुप आदिकथी पूज्या; वली ते जिनेश्वरो केवा? तो के “जे ए लोगस्स उत्तमा सिझा” केतां प्राणीवर्गना कर्ममलना बजावें करीने प्रकृष्ट रीते सिछ थया ने, एवा ते जिनेश्वरो “श्रारुग्ग" केतां सिद्धपणुं, तथा “बो. हिलानं" केतां अरिहंत प्रजुयें बनावेला धर्मनी प्राप्ति, तथा " समा-' हिवर” केतां उत्तम समाधि, “दितु” केतां आपो ? वत्ती ते जिनेश्वरो केवा ? तो के, " चंदेसु निम्मलयरा" केतां चंथी पण निर्मल एवा, तथा “श्राश्च्चेसु अहिय पयासयरा” केतां सूर्यथी पण अधिक प्रकाश करनारा, तथा “सागरवरगंजीरा" केतां समुजनी पेठे उत्तम गांजीयतावाला; एवा "सिझा" केतां सिद्ध प्रजुङ,"मम” केतां मने सिद्धि” केतां मोक्ष " दिसंतु" केतां आपो? त्यार बाद पुरकरवरदीवढेनो पाठ कहे . पुस्कवरदीवढे,धाईसंडेअ जंबुदीवे॥ नरदेवयदिदेदे, धम्माश्गरे नमसामि॥१॥ " पुरस्करवरदीवढे, केतां पुष्करावर्तना अर्ध द्वीपमां, बे जरत, बे ऐरवत, तथा वे महाविदेह बे; तथा धातकीउँनां ने वनो जेनी अंदर एवा धातकी खंडमां बे नरत, वे ऐरवत, तथा बे महाविदेह बे; तथा जंबूनामना दीपमां एक जरत, एक ऐरवत, अने एक महाविदेह क्षेत्र ; ए पं. दरे क्षेत्रो कर्मनूमिनां बे, तथा बाकीनां अकर्मनूमिना क्षेत्रो में; तेउँमा " धम्माश्गरे” केतां धर्मनी श्रादिना करनारा, एवा तीर्थकरोने “नमंसामि" केता हुं नमस्कार करीश. हवे श्रुतधर्मनी स्तुति करे . ते श्रुतधर्म केवो? तो के, "तमतिमिरपडल विसणस्स" केतां अज्ञानरूपी जे घन . अंधकार तेना समूहने नाश करनारो, तथा “ सुरगणनरिंदमहिलस्स" केहेतां चार प्रकारना देवनिकायोथी तथा चक्रवर्तिथी पूजाएलो, तथा "सीमाधरस्स" केहेतां मर्यादाने धारण करनारो एवो जे श्रुतधर्म तेने "वंदे" केता हुँ नमस्कार करुं दु. वली तेश्रुतधर्म केवो? तो के, पप्फो
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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