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________________ तृतीयप्रकाश. २५१ तेने षंढ करी राख? एवा तथा उपलक्षणथी ग्रीष्म ऋतुमां दावानल सलगाववादिकनोजे पापरूप उपदेश देवो, ते श्रावकने योग्य नथी. तेमां घाटलो अपवादबे के पुत्र तथा बंधु श्रादिकने दाक्षिणताथी जे या देश उपदेश देवो, ते श्रावकथी पली शके नहीं. पण एवी दाक्षिणता विना बिलकुल एवी रीतनो आदेश उपदेश श्रावकने कल्पे नही. वे अर्थ दंडनां साधनोने पण तजवामाटे कड़े बे. यंत्रलांगलशस्त्राग्नि, मूशलोदूखलादिकं ॥ दादिष्याविषये हिंसां, नार्पयेत् करुणापरः ॥ 99 ॥ अर्थ :- उपर जणावेला पुत्र, बंधु श्रादिकनी दाक्षिणता विना करुणालु श्रावकें, यंत्र, हल, हथियार, अमि, सांबेलुं, खांडणी, तथा यदि शव्दथी, धनुष्धमण इत्यादि, कोइने श्रपां नहीं. वे अर्थदंडनो चोथो नेद जे, प्रमादाचरण, तेना त्यागमादे त्रण श्लोको कहे . कुतूहलाद् गीतनृत्त, नाटकादिनिरीक्षणं ॥ कामशास्त्रप्रसक्तिश्व, द्यूतमद्यादिसेवनं ॥ ७८ ॥ जलक्रीडांदोलनादि, विनोदो जंतुयोधनं ॥ रिपोः सुतादिना वैरं, नक्तत्री देशराट्कथाः ॥ ७९ ॥ रोगमार्गश्रम मुक्त्वा, स्वापश्च सकलां निशां ॥ एवमादि परिहरेत्, प्रमादाचरणं सुधीः ॥८ ॥ अर्थः- कौतुकथी गीत, नाटक श्रादिकनुं जोतुं; वात्स्यायन ऋषियें रचेला कामशास्त्रनुं वारंवार परिशीलन कर; जुगार, मदिरापान, शिकार विगेरेनुं सेवयुं जलक्रीडा, एटले फुवारा श्रादिकमां, तथा पीचकारीथी जलक्रीडा करवी; हीचका खावा, तथा आदि शब्दथी, पुष्प वादिक तोडवां; तथा कुकडा श्रादिक प्राणीजनां युद्ध कराववां; शत्रु तथा पुत्रादिक साथे जे वैर राख ते; ने जोजन संबंधि, स्त्रीसंबंधि, देश संबंधि, तथा राज्यसंबंधि जे कथा करवी ते, तथा रोग ने मार्गना धाकविना श्रखी रात निद्रा करवी ते; इत्यादि प्रमादनां चरणो बुद्धिमानें तजवां.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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