SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० योगशास्त्र. जे ध्यान ते आर्तध्यान जाणवू. तेना चार दो . तेउँमा मनने गमेनहीं, एवा जे शब्दादिक, तेजेना संप्रयोगमां, तेनुं जे विप्रयोग चिंतवqअने असंप्रयोगनी जे प्रार्थना करवी, ते पेहेलु तथा शूल श्रादि रोगनो संजव होते बते, तेना विप्रयोगनुंजे प्रणिधान करवू,अने तेना असंप्रयोगनी जे चिंता, ते बीजो नेद जाणवो. मनने गमे एवाजे शब्दादिक वि. षयो, तेऊना संयोगनी अभिलाषा तथा तेजेना वियोगथी फुःख पामवं, ते त्रीजो नेद जाणवो.इंस, चक्रवर्ति श्रादिकना वैजवनी प्रार्थनाना नियाणांरूप चोथो नेद जाणवो. बीजाउँने जे रोवरावे, अथवा मुख दीए, तेने रोज ध्यान जाणवू. तेना चार नेदो जाणवा. हिंसानुबंधि, मृषानुबंधि, स्तेयानुबंधि, तथा धनसंरक्षणानुबंधि, ए चार दो जाणवा. एवी रीते आर्त अने रौअध्यानरूप, अनर्थ दंडनो पेहेलो नेद जाणवो. पापकर्मोना उपदेशरूप बीजो नेद जाणवो. हिंसानां साधनरूप शस्त्रादिकनुं जे दान देवं, ए त्रीजो नेद जाणवो. गीत, नृत्य आदिक जे प्रमादो, तेउनु जे श्राचरण करवं ते चोथो नेद जाणवो. (पोताना) शरीरश्रादिकमाटे प्रयोजनविना जे दंड ते अनर्थ दंड कहेवाय. तेनो जे त्याग, तेनुं नाम त्रीजु गुणव्रत जाणवू. हवे ते कुाननुं खरूप, तथा परिमाण कहे बे. वैरिघातो नरेंस्त्वं, पुरघाताग्निदीपने ॥ खेचरत्वाद्यपध्यानं, मर्त्तात्परतस्त्यजेत् ॥ ५॥ अर्थः- वैरिनो घात, राजापणुं, नगरनो घात, अग्निदीपन, तथा खेचरपणा आदिकमां (मने आकाशगामिनी विद्यादिक मले तो ठीक.)त्यादिक संबंधि जे उर्ध्यान, तेने मुहूर्त्तवारमा तजी देवु. हवे पापोपदेशनुं स्वरूप अने ते थकी विरतिनुं खरूप कहे . . वृषनान् दमय देत्रं, कृष षंढय वाजिनः॥ दाक्षिण्याविषये पापो, पदेशोयं न युज्यते ॥ ७ ॥ अर्थः- वर्षाकाल नजदिक श्रावे , माटे बेलोने तुं दम ? वली तुं खेतर खेड ? केम के जो वर्षाद आवी पडशे, तो वाववानो काल चाल्यो जशे, वली राजाने हमणां घोडानो लडाइ आदिकमाटे खप पडशे, माटे
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy