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________________ तृतीयप्रकाश. अर्थः-रात्रिनोजननो नियम कर्याविना, दिवसे जमनारने पण फल मलतुं नथी, कारण के पेहेलेथी वात कर्याविना (लौकिकमां पण ) पो तानी रकमतुं. व्याज मलतुं नथी. .. ये वासरं परित्यज्य, रजन्यामेव मुंजते॥ ते परित्यज्य माणिक्यं, काचमाददते जडाः॥६५॥ अर्थः- जे माणसो दिवसने तंजीने, फक्त रात्रिएज नोजन करे , ते जड माणसो, माणिकने तजीने काचने ग्रहण करे . वली अहीं को शंका करे के, सघली जातनो नियम तो फलवान् डे, त्यारे कोश एवुज नियम करे, के, मारे रात्रिएज जमवं, अने दिवसे जमवू नहीं, ते माणसनी शी गति थाय ? तेने माटे कहे . वासरे सति ये श्रेय, स्काम्यया निशि मुंजते॥ ते वपंत्यूषरे देत्रे, शालीन सत्यपि पटवले ॥६६॥ अर्थः- दिवस होते ते पण, कल्याणनी श्वाथी जे माणसो रात्रि जोजन करे , ते डांगर वाववाना क्यारा होते बते, पण तेउने तजी ने, उखर (खार) नूमिवाला खेतरमां, ते डांगर वावे के कारण के जेथी अधर्मनी निवृत्ति थाय, एवो नियम फलवान् ने अने आवो नियम तो तेथी विपरीत . • हवे रात्रिनोजन, फल कहे जे. जलककाकमार्जार, गृघ्रशंबरशूकराः॥ अदिश्चिकगोधाश्च, जायंते रात्रिनोजनात् ॥६॥ अर्थः- रात्रिनोजन करवाथी, घुबड, कागडा बिलाडा, गीध, शंबर, लुंड, सर्प, विंदु, तथा चंदनघो, विगेरेनो अवतार श्रावे . हवे वनमालाना उदाहरणथी रात्रिलोजनना दोषनी महत्ताने देखाडे बे. श्रूयते ह्यन्यशपथा, ननादृत्यैव लक्ष्मणः ॥ निशानोजनशपयं, कारितो वनमालया ॥६॥ अर्थः- रामायणमां पण कडं ले के, वनमालाए लक्ष्मणने, बीजा सोगनो बोडीने,रात्रिनोजननासोगन कराव्या बेतेनी कथा या प्रमाणे जे.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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