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________________ योगशास्त्र.. १५० तिलैीहियवैर्मा रनिर्मूलफलेन वा ॥ दत्तेन मासं प्रीयंते विधिवत्पितरोनृणां॥४२॥ अर्थः- विधिपूर्वक दीधेला तल, डांगर, जव, श्रडद पाणी, कंदमूल, तथा फलोथी पितृले एक मास सुधि तृप्त थाय . छौ मासौ मत्स्यमांसेन त्रीन्मासान् हारिणेन तु॥ औरभ्रेणाथ चतुरः शाकुनेनेद पंच तु॥४३॥ अर्थ:- मत्स्यना मांसथी बे माससुधि, हरिणना मांसथी त्रण मासो सुधी, घेटाना मांसथी चारमाससुधि, तथा पदिना मांसथी पांच माससुधी पितृ तृप्त श्राय . षएमासांबागमांसेन पार्षतेनेह सप्त वै॥ अष्टावणस्य मांसेन रौरवेण नवैव तु ॥४४॥ अर्थः-बकराना मांसथी माससुधि पृषत जातिना हरिणनामांसथी सात माससुधि,एण जातिना मांसथी नव माससुधिपितुने तृप्ति थायडे. दशमासांस्तु तृप्यंति वारादमहिषामिषैः॥ शशकूर्मयोमासेन मासानेकादशैव तु ॥४५॥ डुक्कर अने पाडाना मांसथी दश माससुधि, तथा ससला अने काचबाना मांसथी, अग्यार माससुधि पितृ तृप्ति पामे डे. संवत्सरं तु गव्येन पयसा पायसेन तु॥ वाध्रीणसस्य मांसेन तृप्तिर्वादशवार्षिकी ॥४६॥ अर्थः-गायनुं मांस, दूध, तथा दही श्रादिकथी, एक वर्षसुधि, तथा घरडा बकराना मांसथी बार वर्षोंसुधि पितृ तृप्त थाय ने. हवे एवी रीतनी हिंसाने दूषण लगाडता थका कहे . इति स्मृत्यनुसारेण पितृणां तर्पणाय या॥ मूडै विधीयते हिंसा सापि दुर्गतिदेतवे ॥४॥ अर्थः-एवी रीते मनुस्मृति श्रादिकने अनुसारें, पितृनने तृप्त करवा माटे, मूढ लोको जे हिंसा करे , ते हिंसा तेजेने पुर्गतिमाटे थाय . कारणके, जो मृत्यु पामेला जीवोने मांस श्रादिकथीतृप्ति थाय, तो बुझा
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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