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________________ वितीयप्रकाश. २०ए टीकाः- अहिंसादिक महाव्रतोने धरनारा; अने धीर, एटले श्रापत्तिमां विकलता विनाना, कारण के धैर्यपणाथी अखंडित महाव्रतने धारण करी शके . एवी रीतें मूलगुणोनुं धारवापणुं कहीने हवे उत्तर गुणोनुं धारवापणुं कहे . लोकोपासेथी अन्न, पाणी, तथा धर्मोनां उपकरण लश्ने ते पर आजीविका चलावनार; पण धन, धान्य, सोनू, गाम, के नगरने ग्रहण करे नहीं; हवे मूलगुण अने उत्तर गुणनां धारण करवानां कारणजूत गुणने कहे . सामायिकमां रहेनारा, "सम," एटले रागद्वेष रहित आत्मा, अने तेने ज्ञानादिक गुणोनी जे प्राप्ति ते सामायिक कहेवाय, तेमां रहेनारा; अने एवी सामायिकमा रहेनार मुनि मूलोत्तरगुणवाला चारित्रने पालवाने समर्थ बे. हवे उपरनां लक्षणो तो सघला साधुऊने सरखां होय , अने गुरुचें असाधारण लदण तो तेउनु धर्मोपदेशकपणुं . संवर अने निर्जरारूप, यति अने श्रावक संबंधि धर्म नो जे उपदेश करे, ते धर्मोपदेशक कहेवाय. वली सद्भूत (सत्य तत्वोवालां) शास्त्रोनो जे अन्यास करे, ते "गुरु" कहेवाय. . हवे कुगुरुनु लक्षण कहे . सर्वानिलाषिणः सर्वनोजिनः सपरिग्रहाः॥ अब्रह्मचारिणो मिथ्योपदेशा गुरवो न तु ॥ए॥ अर्थः- सर्व श्छाउँ राखनारा, सघर्चा खानारा, परिग्रहधारी, ब्रह्मचर्य नहि पालनार, तथा मिथ्या उपदेश करनाराउँने गुरु नहिं जाणवा. टीकाः- स्त्री, धन, धान्य, सुवर्ण, खेतर, घर, ढोर इत्यादि राखनारा सर्वानिलाषिर्ड कदेवाय; तथा मद्य, मांस, अनंतकाय आदिकनुं जक्षण करनारा “सर्वनोजी" कहेवाय. तथा पुत्र, स्त्री आदिकनी साथे रहेनारा सपरिग्रह कहेवाय. श्रने तेथीज तेउँने अब्रह्मचारीपणुं आवी जायजे. तो पण श्रब्रह्मनु महादोषपणुं देखाडवा माटे जुएं “अब्रह्मचारिनु" विशेषण आपेलुं बे. हवे कुगुरुपणानुं असाधारण कारण कहे जे ते ए के ते5 “मिथ्योपदेशी” बे; एटले प्रमाणपुरुषना उपदेश रहित, तेउनुं धर्म कथन . माटे एवाउँने गुरु कहेवाय नहीं; श्रही शंका करे ने के, जो
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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