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________________ आचाराङ्गसूत्रे आक्षेपण्यादिचतुर्विधधर्मकथासंचारोद्भावितानन्दधारातरङ्गसमुल्लसितस्वान्तप्रभूतभव्यभावितात्मा धर्मकथी जन्मजरामरणादिभीपणपीनपाठीनमीनमकरगणसंक्रमणप्रियवियोगाप्रियसंयोगवडवानलाकुलितापारसंसारसागरात् स्वयं तरति, परानपि तारयति । स च प्रभूतभव्यान् प्रवाजयन् भवकूपपतत्प्राणवाणसमाश्वासनजिनशासनमहिमानमुपवृहयन् समस्तमेव जगत् जिनशासनरसिकं कुर्वन् , मिथ्यात्वमुत्थापयन् । " भगवन् ! धर्मकथा से जीव को क्या लाभ होता है ? उत्तर-धर्मकथा से जीव को निर्वाण की प्राप्ति होती है । धर्मकथा से जीव प्रवचन की प्रभावना करता है। प्रवचन, की प्रभावना से आगे के लिये भद्र (शुभ) कर्मों का बन्ध करता है" ॥ ४ ॥ आक्षेपणी आदि चार प्रकार की धर्मकथा से उत्पन्न होने वाली आनन्द की धाराओं की तरङ्गों से जिन का अन्तःकरण उल्लास को प्राप्त हुआ है, ऐसे अनेक भावितात्मा भव्य धर्मकथा करने वाले पुरुष जन्म जरा और. मरण रूपी भयानक और विशाल मगरमच्छोंसे व्याप्त, एवं इष्ट-वियोग और अनिष्ट-संयोग रूपी वडवानल से आकुल-व्याप्त अपार संसार सागर से स्वयं भी पार होते है और दूसरों को भी पार करते है । वह धर्मकथाकार अनेकानेक भव्य जीवों को दीक्षित करता हुआ, संसाररूपी कूप में पडनेवाले प्राणियों को त्राण करने का आश्वासन देने वाले जिनशासन की महिमा बढाता हुआ समस्त जगत् को जिनशासन का रसिक अनुरागी बनाता हुआ मिथ्यात्व की उत्थापना "मगवन् ! धर्मथाथी ने शु दाम थाय छ ? ' ઉત્તર—ધર્મકથાથી જીવને નિરાની પ્રાપ્તિ થાય છે, ધર્મકથાથી જીવ પ્રવચનની પ્રભાવના કરે છે, પ્રવચનની પ્રભાવનાથી આગળ શુભ કર્મોને બંધ કરે છે” આક્ષેપણી આદિ ચાર પ્રકારની ધર્મકથાથી ઉત્પન્ન થનારા આનન્દની ધારાઓના તરંગથી જેનું અંતઃકરણ ઉલ્લાસને પ્રાપ્ત થયું છે, એવા અનેક ભાવિતાત્મા ભવ્ય ધર્મકથા કરવાવાળા પુરૂષ જન્મ. જરા અને મરણપી ભયાનક અને વિશાલ મગમોથી વ્યાપ્ત એ પ્રમાણે ઈષ્ટ–વિગ અને અનિષ્ટ સંગરૂપી વડવાનલથી સહિત અપાર સંસારસાગરથી પિતે પણ પાર ઉતરે છે, અને બીજાને પણ પાક तारे छ,
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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