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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अवतरणां वस्थास्वरूपमनेनेति चरण = मूलगुणरूपम् । यद्वा चरण-व्रतादि, तच्च सप्ततिसंख्यकम् , उक्तञ्च " वय५ समणधम्म१० संजम१७, वेयावच्चं१० च बंभगुत्तीओ ९। णाणाइतियं३ तव१२ कोहनिग्गहाई४ चरणमेयं ॥ १॥” इति । क्रियते चरणस्य पुष्टिरनेनेति करणम् = उत्तरगुणरूपम् । यद्वा करणंपिण्डविशुद्धयादि, एतदपि सप्ततिसंख्यकम् , उक्तश्चउसे अर्थात् मूलगुणको ‘ चरण' कहते हैं । अथवा व्रत आदि 'चरण' कहलाते हैं। वे ७० सत्तर हैं । कहा भी है - पांच महावत, दश श्रमणधर्म, सत्रह संयम, दश वैयावृत्य, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्तियां, रत्नत्रय - (सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र), बारह प्रकारका तप, चार क्रोधादिविजय-(क्रोधविजय, मायाविजय, मानविजय, लोभविजय), यह ७० सत्तर प्रकारका 'चरण' कहलाता है। __चरण की पुष्टि करने वाला 'करण' कहलाता है । करण का अभिप्राय है-- उत्तर गुण । अथवा पिण्डविशुद्धि आदिको करण कहते हैं। इसके भी सत्तर ७० भेद हैं। कहा भी है : પાંચ મહાવ્રત, દસ શ્રમણધર્મ, સત્તર સંચમ, દશ વૈયાવૃત્ય, નવ બ્રહ્મચર્યની ગુપ્તિઓ, રત્નત્રય-(સમ્યગ્રજ્ઞાન, દર્શન અને ચારિત્ર) બાર પ્રકારનો તપ, ચાર धाहिविय,-(औषविल्य, मानविय, मायाविन्य, बलविन्य ) प्रमाणे सित्तर (७०) प्रा२ना २५ उपाय छे. ॥१॥ ચરણની પુષ્ટિ કરવા વાળા કરણ કહેવાય છે. કરણને અભિપ્રાય છે–ઉત્તર ગુણ, અથવા પિંડાવિશુદ્ધિ આદિને કરણ કહે છે, તેના પણ સિત્તેર ભેદ છે. કહ્યું પણ છે
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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