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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य. १ उ. ७ न. १ वायुकायविराधनाविवेकः ६७९ जानाति स बहिः परकीय स्ख दुःखं वा जानाति । ममात्मनि दुःखमसातवेदनीयकर्मोदयात स्मापत्ति, सुरुमपि सातवेदनीयकादियात् स्वानुभवसिद्धम् , एवं स्वात्मगतसु र दुःखप्रत्यक्षेण परकीयसुखदुःखानुमाने क्तुं शक्नोतीत्यर्थः । उक्तमर्थ दृढीकर्तु पुनस्तमेव परावर्तयन्नाह--' यः वहिर्जानाति '. इत्यादि । ___ यः, बहिः परात्मगतं सुखं दुःखे वा जानाति, स अध्यात्म-स्वात्मगतं सुख दुःखं वा जानाति । परेषां स्वस्य च सुखदुःखयोरनुकूलपतिकूलवेदनीयरूपे स्वरूपे साम्यादिति भावः । यद्वा-परविराधनापरिहारेण तत्फलभूतं स्वात्मनः सुख, तथा परपीडनेन तत्फलभूतं स्वात्मनो दुःख भवति, एवं परकीयमेव सुख दुःखं वा वह वाह्य अर्थात् दूसरे के सुख-दुःख को जानता है । मेरे आत्मा में असातावेदनीय कर्म के उदय से दुःख आया है और सातावेदनीय कर्म के उदय से सुख स्वानुभव सिद्ध है । इस प्रकार अपने आत्मा का सुख और दुःख जो प्रत्यक्ष से जानता है, वह दूसरों के सुख-दु:ख का अनुमान कर सकता है । इसी अभिप्राय को पुष्ट करने के लिए यही बात पलटकर कहते हैं-जो बाम को जानता है वह अध्यात्म को जानता है । अर्थात्-जो पराये सुख-दुःख को जानता है वह अपने आत्मा के सुख दुःख को जानता है । पराये और अपने सुख-दुःख का अनुकूल वेदन और प्रतिकूल वेदन रूप स्वरूप समान है। अथवा-परको पीडा पहुंचाने का त्याग करने से सुखरूप फल प्राप्त होता है और पीडा पहुंचाने से दुःख मिलता है । इस प्रकार पराया सुख और दुःख અર્થાતુ બીજાના સુખ-દુઃખને જાણે છે. મારા આત્માને વિષે અસાતવેદનીય કર્મના ઉદયથી દુઃખ આવ્યું છે, અને સાતવેદીય કર્મના ઉદયથી સુખ સ્વાનુભવસિદ્ધ છે. આ પ્રમાણે પિતાનાં આત્માનાં સુખ-દુઃખનું અનુમાન કરી શકે છે. એ અભિપ્રાયને પુષ્ટ કરવા માટે એજ વાત પલટાવીને કહે છે જે બાહ્યને જાણે છે તે અધ્યાત્મને જાણે છે. ___ अर्थात्-२ ५२या सुम-:मने गये , ते पोताना यात्माना सुम-दुःभने જાણે છે. પરાયા-બીજાના અને પિતાના સુખ-દુઃખનું અનુકૂલ વેદના અને પ્રતિકૂલ વેદનરૂપ સ્વરૂપ સમાન છે. અથવા–બીજાને પીડા પહોંચાડવાના ત્યાગ કરવાથી સુખરૂપ ફલ પ્રાપ્ત થાય છે. અને પીડા પહોંચાડવાથી દુખ મળે છે.
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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