SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 711
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य० १ उ. ६ सू. १ त्रमजीवलक्षण - प्ररूपणा ६५१ रुतं=शब्दकरणम्, भ्रान्तम् - इतश्चेतश्च गमनम्, त्रसनम् - दु: खादुद्वेजनम्, पलायितम् = पलायनम्, आगतेः कुतश्चित्कचित् गतेश्च कुतश्चित् कचिदेव च विज्ञानम् । उक्तञ्चैतद्भगवता दशवैकालिकसूत्रे , " जेर्सि केसिंचि पाणाणं अभिक्कतं पडिक्कतं संकुचियं पसारियं रुयं भंत तसि पलाइ आगगइविष्णाया " ॥ १ ॥ इति । प्ररूपणाद्वारम् - 1 सकायाश्चतुर्विधाः - द्वीन्द्रिय - त्रीन्द्रिय - चतुरिन्द्रिय- पञ्चेन्द्रियभेदात् sta प्रथम देशके लोकवादिकरणे त्रसानां भेदप्रभेदाः प्ररूपिताः । विस्तरतो । प्रसारण है | बोलना रुत कहलाता है । इधर-उधर जाना भ्रमण है । दुःख से उद्वेग पाना त्रसन है । भागने को पलायन कहते है । एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने का विज्ञान आगतिगतिविज्ञान कहलाता है । भगवान् ने दशवैकालिक सूत्र में कहा है: " जिन किन्हों प्राणियों में अभिक्रमण, संकोचन, प्रसारण, रुत, भ्रमण, त्रसन, पलायन और आगतिगतिका विज्ञान ( पाया जाता है वे सब त्रस जीव हैं। ) " प्ररूपणाद्वार सकाय के चार भेद है - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय इसी शस्त्र के पहले उद्देश के अन्दर लोकवादी प्रकरण में त्रस कहे हैं । विस्तार से जानने के इच्छुक वहीं से जान लेवें । इस सूत्र 1 पंचेन्द्रिय । और जीवों के भेद-प्रभेद में भगवान् ने ખેલવુ તે રૂત કહેવાય છે. અહીં-તહીં જવુ' તે ભ્રમણુ છે. દુઃખથી ઉદ્વેગ પામવું તે ત્રસન છે. ભાગવુ' તેને પલાયન કહે છે. એક જગ્યાથી બીજી જગ્યાએ આવવાજવાનુ` વિજ્ઞાન તે આગતિગતિવિજ્ઞાન કહેવાય છે. ભગવાને દશવૈકાલિક સૂત્રમાં કહ્યું છેઃ “? अर्ध आएणीसोभां अलि भणु, प्रतिभा, सायन, प्रसारण, रुत, अभय, त्रसन, पलायन भने आगति-जतिनुं विज्ञान ( लेवामां आवे छे ते सर्व त्रस व छे.) " પ્રરૂપણાકાર— ત્રસ કાચના ચાર ભેદ છેઃ દ્વીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય અને પ'ચેન્દ્રિય, આજ શાસ્ત્રના પ્રથમના ઉદ્દેશમાં લેાકવાદીપ્રકરણમાં ત્રસજીવેાના ભેદ–પ્રભેદ ખતાવ્યા છે, વિસ્તારથી
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy