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________________ ૮ चारसूत्रे इह पुरुषस्योपदेशयोग्यतया सामर्थ्येन संनिहितत्वात्तच्छरीरं संनिकृष्टवा - चिनेदशब्देन परामृश्यते । इदमपि मनुष्यशरीरं यद्वा - सामान्यरूपेण त्रसकाये चैतन्यस्य सुज्ञेयत्वात् इदं = त्र सशरीरं, जातिधर्मकं - जातिः - जननं, तद्धर्मकं - जननस्वभावं, एतदपि = वनस्पतिशरीरमपि जातिधर्मकं = मनुष्यशरीरवद् वनस्पतिशरीरमपि जननस्वभावकमस्तीत्यर्थः । तथा इदमपि मनुष्यशरीरं वृद्धिधर्मकं = बालकौमाराद्यवस्थामाश्रित्य वर्धनस्वभावम्, एतदपि वनस्पतिशरीरं अङ्कर किसलयपत्रस्कन्धशाखाप्रशाखादिना वर्धनशीलम् । इदमपि मनुष्यशरीरं चित्तवत् = चेतना 'इदम् ' शब्द का प्रयोग समीपवर्ती वस्तु के लिए किया जाता है । मनुष्य उपदेश का पात्र है और उसका शरीर भी अत्यन्त समीप है अतः मनुष्य के शरीर को 'इदम् ' शब्दद्वारा निर्दिष्ट किया गया है । अथवा त्रस जीव के शरीर में चैतन्य को समझना सुगम है, इस कारण 'इदम्' का अर्थ मनुष्यशरीर के बजाय त्रस जीव का शरीर समझ लेना चाहिए | यह मनुष्यशरीर या त्रस जीव का शरीर उत्पन्न होने का स्वभाव वाला है, उसी प्रकार वनस्पति का शरीर भी उत्पन्न होने का स्वभाव वाला है । तथा मनुष्य शरीर वृद्धिशील है - बाल, कुमार आदि अवस्थाओं में बढता जाता है उसी प्रकार वनस्पतिशरीर भी अंकुर, किसलय, पत्र, स्कंध, शाखा और प्रशाखा आदि रूप से बढता जाता है । मनुष्यशरीर चेतनावान् है उसी प्रकार वनस्पति का शरीर भी चेतनावान् है, - " 'इदम् ' •’ શબ્દના પ્રયાગ સમીપવર્તી વસ્તુ માટે કરવામાં આવે છે. મનુષ્યજ ઉપદેશને પાત્ર છે, અને તેનુ શરીર અત્યન્ત સમીપ છે. એ કારણથી મનુષ્યના शरीरने ‘इदम्' शब्दद्वारा निर्दिष्ट उयु छे, अथवा त्रस लवना शरीरमां चैतन्यने सभनवु सुगम छे. थे अरथी 'इदम् ' नो अर्थ मनुष्य शरीरना महले त्रस लबनुं શરીર સમજી લેવું જોઈ એ. આ મનુષ્યશરીર અથવા ત્રસજીવનું શરીર ઉત્પન્ન થવાના સ્વભાવવાળું છે, તે પ્રમાણે વનસ્પતિનુ શરીર પણ ઉત્પન્ન થવાના સ્વભાવવાળું છે. તથા મનુષ્યશરીર વૃદ્ધિશીલ છે—ખાલકુમાર, આદિ અવસ્થામાં વધતું જાય છે, તે પ્રમાણે વનસ્પતિશરીર यणु अङ्कुर, ङिसलय-भजा, पान, पत्र, स्ध, शामा भने प्रशाखा माहि३पथी वध्ये જાય છે. મનુષ્યશરીર ચેતનાવાન છે, તે પ્રમાણે વનસ્પતિનું શરીર પશુ ચેતનાવાન છે,
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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