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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.४ सू. १० अग्निकायसमारम्भनिषेधः ५८१ समारभमाणान् अन्यान् न समनुजानीयात् नानुमोदयेत् । शेपं सुगमम् । यस्यैते अग्निकर्मसमारम्भाः कर्मणां समारम्भाः कर्मसमारम्भाः, अग्नेः कर्मसमारम्भाः अग्निकर्मसमारम्भाः अग्निं निमित्तीकृत्य कर्मकारणीभूताः उपमर्दनव्यापारा इत्यर्थः,परिज्ञाताः =सर्वथा ज्ञाताः, ज्ञपरिज्ञया बन्धकारणत्वेन विदिताः प्रत्याख्यानपरिज्ञया च परिवर्जिता भवन्ति स एव परिज्ञातकर्मा-परिज्ञातानि=ज्ञपरिज्ञया स्वरूपतो विपाकतस्तदुपादानतश्चावगतानि प्रत्याख्यानपरिज्ञयाच परित्यक्तानि कर्माणि सावधव्यापाराः येन-स परिज्ञातकर्मा मनोवाकायैः सकलसावधकरणकारणानुमतिनिवृत्तो मुनिर्भवतीत्यर्थः । 'इति ब्रवीमि' अस्य व्याख्यानं पूर्ववद् बोध्यम् । ॥ इत्याचारागसूत्रस्याऽऽचारचिन्तामणिटीकायां प्रथमाध्ययने चतुर्थो देशकः संपूर्णः ॥ १-४॥ आरंभ नहीं कराता और आरंभ करने वालों की अनुमोदना नहीं करता । शेष भाग सुगम हैं। __अग्नि के निमित्त से होने वाले तथा कर्मबंध के कारणभूत यह सब पापमय व्यवहार जिस ने कर्मबंध के कारण ज्ञपरिज्ञा से समझ कर प्रत्याख्यानपरिज्ञा से त्याग दिये है वही परिज्ञातकर्मा मुनि है । जिसने इन व्यापारों का स्वरूप, फल और कारण ज्ञपरिज्ञा से जान लिया है तथा प्रत्याख्यानपरिज्ञा से त्याग कर दिया है उसे परिज्ञातकर्मा मुनि कहते है । ऐसा मुनि मन, वचन काय से समस्त सावद्य के करने, कराने और अनुमोदन करने का त्यागी होता है । 'इति ब्रवीमि' की व्याख्या पहले के समान समझ लेना चाहिए ।।सू० १०॥ श्रीआचारागसूत्रकी 'आचारचिन्तामणि' टोकाके हिन्दी अनुवादमें प्रथम अध्ययनका चौथा उद्देश सम्पूर्ण ॥ १-४॥ આપતા નથી. શેષ–બાકીને ભાગ સુગમ છે. અગ્નિના નિમિત્તથી થવાવાળા તથા કર્મબંધના કારણભૂત આ સર્વ પાપમય વ્યવહારને જેણે કર્મબંધના કારણે સપરિણાથી સમજીને પ્રત્યાખ્યાનપરિજ્ઞાથી ત્યાગ કરી આપે છે તેને પરિજ્ઞાતકર્મ મુનિ કહે છે. એવા મુનિ-મન, વચન, કાયાથી समस्त साधने ४२, ४२१j मने मनुभाहन ४२७ तेना त्यागी डाय छ ' इति ववीमि 'नी व्याज्या प्रथम ना समान सम सेवी से. (स. १०) શ્રી આચારાંગસૂત્રની “આચારચિંતામણિ ટીકાના ગુજરાતી-અનુવાદમાં પ્રથમ અધ્યયનને या। देश: संपू. (१-४)
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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