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________________ २४५ आचारचिन्तामणि-टोका अध्य.१ उ.१ सू.५ आत्मवादिप० अयमात्मा ज्ञानदर्शनोपयोगाभ्यां न भिन्न इति बोधयितुमुपयोगवानिति, इदं च ज्ञानात्मनोरेकान्तभेद इति नैयायिकमतं निराकर्तुमुक्तम् । सर्वज्ञसिद्धान्ते तु द्रव्यं वस्तुतो गुणपर्यायेभ्यो न भिन्नम् , अतः कथञ्चिदभेदविवक्षयाऽऽश्रयिभावं परिकल्प्य-उपयोगवानिति निगदितम् । उपयोगो द्विधा-ज्ञानदर्शनभेदात् । सविकल्प उपयोग एव ज्ञानोपयोगः, । निर्विकल्प उपयोगो दर्शनोपयोगः । तत्र ज्ञानोपयोगोऽष्टविधः-मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि पञ्च सम्यग्ज्ञानानि, मति-श्रुत-विभंग-भेदेन त्रीण्यज्ञानानि चेति । अज्ञानान्यपि ज्ञानरूपतया ज्ञानवर्गे निक्षिप्तानि । अत्रैकमेव केवलज्ञानं क्षायिकं सर्वा आत्मा ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग से भिन्न नहीं है' यह बतलाने के लिए उसे उपयोगवान् कहा है । ' ज्ञान और आत्मा का एकान्त भेद है' ऐसा नैयायिको का मत है। इस मत का निराकरण करने के लिए यह कथन किया गया है। सर्वज्ञ के सिद्धान्त में द्रव्य वास्तव में गुण और पर्यायों से भिन्न नहीं है, अतः कथञ्चित् भेद की विवक्षा करके आधाराधेय भाव की कल्पना से उपयोगवान् कहा है। उपयोग के दो भेद है-ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग । सविकल्प उपयोग को ज्ञानोपयोग कहते है और निर्विकल्प उपयोग दर्शनोपयोग कहलाता है। इनमें से ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का है-(१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्ययज्ञान, (५) केवलज्ञान, (६) कुमतिज्ञान, (७) कुश्रुतज्ञान और (८) विभङ्गज्ञान, अन्तके तीन अज्ञान कहलाते है । ये विपरीतज्ञानरूप होने के कारण इन्हे ज्ञान की कोटि में रक्खा है । इनमें આત્મા જ્ઞાને પગ અને દર્શને પગથી ભિન્ન નથી, એ બતાવવા માટે જ તેને ઉપગવાનું કહ્યો છે. “જ્ઞાન અને આત્માને એકાન્ત ભેદ છે એનૈયાયિકેને મત છે, એ મતનું નિરાકરણ કરવા માટે એ કથન કરવામાં આવ્યું છે. સર્વજ્ઞના સિદ્ધાન્તમાં દ્રવ્ય એ વાસ્તવમાં ગુણ અને પર્યાયથી ભિન્ન નથી, તેથી કંચિત ભેદની વિવક્ષા કરીને આધારાધેય ભાવની કલ્પનાથી ઉપગવાન કહ્યો છે. उपयोग ले छे-(१) ज्ञानोपयोग मने. (२) शनापयोग, सविप ઉપયોગને જ્ઞાનોપચેગ કહે છે, અને નિર્વિકલ્પ ઉપગ તે દશનો પગ उपाय छे. तमां ज्ञानोपयोग -18 प्रहारत छ. (१) भतिज्ञान, (२) श्रतज्ञान, (3) मवधिज्ञान, (४) मन:पर्य यज्ञान, (५) वज्ञान, तथा (6) भतिज्ञान, (७) सुश्रुतज्ञान अने. (८) विज्ञान. तभा छेपटना र मज्ञान हेपाय छे. પરંતુ વિપરીતજ્ઞાનરૂપ હોવાના કારણે તેને જ્ઞાનની કટિમાં રાખ્યા છે. એમાં એક
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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