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________________ - आचारचिन्तामणि-टीका अवतरणा एष सामान्यरूपेण प्रसिद्धो लोकः-अनन्तरोक्तद्रव्यषट्कसमुदायरूप इति भाव । कालस्य-(१)-अरूपित्वम् , (२)-अचेतनत्वम् , (३)-अक्रियत्वम् , (४)-वर्तनाहेतुत्वं चेति गुणाः । (१)-अतीतत्वम् , अनागतत्वम् , (२)-वर्तमानत्वं, (३)-अगुरुलघुत्वं चेति पर्यायाः। ___ अयं द्रव्यक्षेत्रकालभावगुणभेदेन पञ्चधा ज्ञायते । यथा-द्रव्यत एकः कालः क्षेत्रतः-अर्द्धतृतीयद्वीपप्रमाणः, कालतः-आद्यन्तरहितः, भावतः-अरूपीवर्णगन्धरसस्पर्शवर्जित इति, गुणतः-वर्तनालक्षणः, इति ।। वरदर्शी-लोकालोक को देखनेवाले जिन भगवानने धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्लिकाय और जीवास्तिकाय, इन सबको अर्थात् इनके समुदाय को लोक कहा है। उपरिनिर्दिष्ट छ द्रव्यों के समुदाय को भगवानने सामान्यतया लोक कहा है। काल के--अरूपित्व, अचेतनत्व, अक्रियत्व, वर्तनाहेतुल्व, ये चार गुण है। अतीतत्व, अनागतत्व, वर्तमानत्व, अगुरुलघुत्व, ये चार पर्याय है । ___ यह काल-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण के भेद से पांच प्रकार से जाना जाता है। जैसे-द्रव्य से काल एक है, क्षेत्र से समयक्षेत्रप्रमाणवाला, काल से आद्यन्तरहित, भाव से अरूपी, अर्थात् वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-रहित, और गण से वर्तनालक्षणवाला है। ઉપર દર્શાવેલા છ દ્રવ્યોના સમુદાયને ભગવાને સામાન્ય રીતે લોક કહેલ છે. કાળના–અરૂપિત્વ, અચેતનત્વ, અકિયત્વ અને વર્તનાહેતુત્વ, એ ચાર ગુણ છે. અને અતીતત્વ, અનાગતતત્વ, વર્તમાનત્વ, તથા અગુરુલઘુત્વ એ ચાર પર્યાય છે. આ કાળ-દ્રવ્ય, ક્ષેત્ર, કાળ, ભાવ અને ગુણના ભેદથી પાંચ પ્રકારે જણાય છે. જેમકે-દ્રવ્યથી કાળ એક, ક્ષેત્રથી અઢીદ્વીપ પ્રમાણ, કાલથી આદ્યન્તરહિત, ભાવથી २५३४ी-वर्ण-1-1-२४-२५श-२हित छ, भने गुथी पर्तनातक्षापामा छ.
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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