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________________ - आचारचिन्तामणि-टीका अवतरणा ___(१३) अथ नूतनपात्रव्यापृतिःगोचर्यादिनिमित्तं नूतनपात्रव्यापृतिश्च, मृगशिरःपुष्याश्विनीहस्वानुराधाचित्रारेवतीषु, सोमगुरुवासरयोश्च शुभदा। (१४) आचार्यादिपदप्रदानसमयःआचार्यादिपदप्रदाने-श्रवणं, ज्येष्ठा, पुष्यम् , अभिजित् , हस्तः, अश्विनी, रोहिणी, उत्तरात्रयं, मृगशिरः, अनुराधा, रेवती, एतानि नक्षत्राणि शुभानि शोमनतिथिवारादयोऽपि द्रष्टव्याः। अथ (४) द्रव्यानुयोगःद्रवति-गच्छति प्राप्नोति मुञ्चति वा तांस्तान् पर्यायानिति द्रव्यम् । अथवा (१३) नूतन पात्र का प्रयोग गोचरी आदि के लिए नवीन पात्र का उपयोग मृगशिर, पुण्य, अश्विनी, हस्त, अनुराधा, चित्रा और रेवती नक्षत्रों में, तथा सोमवार और गुरुवार के दिन करना शुभ है। (१४) आचार्य आदि पदवीदान का समय आचार्य आदि पदवी देने में श्रवग, ज्येष्ठा, पुण्य, अभिजित्, अश्विनी, रोहिणी, उत्तरात्रय, ( उत्तराषाढा उत्तराभाद्रपदा, उत्तराफाल्गुनी) मृगशिर, अनुराधा और रेवती, ये नक्षत्र शुभ हैं । इस प्रसङ्ग पर शुभ तिथि और शुभ वार आदि भी देखना चाहिए । (४) द्रव्यानुयोगआगे की पर्याय प्राप्त करने वाला और पूर्व पर्याों का त्याग करने वाला द्रव्य (23) नवस पात्र उपयोग ગોચરી આદિ માટે નવા પાત્રને ઉપયોગ મૃગશીર્ષ, પુષ્ય, અશ્વિની, હસ્ત, અનુરાધા, ચિત્રા, અને રેવતી નક્ષત્રોમાં, તથા સોમવાર અને ગુરૂવારના દિવસે કરવા ते शुम छे. (१४) माया माह पहनना समय__मायार्य ह ५४वी मायाम श्रqg, न्ये, पुण्य, ममिलत, स्त, अश्विनी शडिली, उत्तरात्रय (उत्त।-पाढा, उत्तरा-माद्रपद, उत्तरा-शशुनी ) મૃગશિર, અનુરાધા અને રેવતી, આ નક્ષત્રો શુભ છે. આ પ્રસંગ ઉપર શુભ તિથિ અને શુભ વાર વગેરે પણ જેવું જોઈએ. (४) व्यानुयोगઆગળની પર્યાય પ્રાપ્ત કરનારા અને પ્રથમની પર્યાયને ત્યાગ કરવાવાળાને
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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