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________________ ४६ - आचाराङ्गसूत्रे अथ लग्नविचार: निष्क्रमणे मिथुन - सिंह - कन्या - वृश्चिक - धनु-मकर - कुम्भ - मीनानि लगानि शुभानि | अन्यानि चत्वारि वर्जनीयानि । (९) ग्रहविचार: दीक्षालग्नेशनचरं मध्यमबलं, गुरु बलीयांस, शुक्रं बलहीनं विधाय दीक्षा देया । द्वितीये, पञ्चमे षष्ठे, सप्तमे, एकादशे स्थाने शनिर्मध्यमवली भवति । त्रिकोणे केन्द्रे एकादशे च स्थानेऽवस्थितो गुरुर्बलीयान् भवति । तृतीये, षष्ठे, नवमे, द्वादशे च स्थाने स्थितः शुक्रो बलहीनो भवति, अत एवं शुक्रास्तेऽपि दीक्षा ग्राह्येति संप्रदायविदः | (८) लग्न- विचार - दीक्षा अङ्गीकार करने में - मिथुन, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन, लग्न शुभ है। शेष चार वर्जनीय है । (९) ग्रह - विचार -- दीक्षालग्न में शनैश्चर मध्यम बल वाला, गुरु बलशाली और शुक्र बलहीन हो तो दीक्षा देनी चाहिए । दूसरे पांचवे, छठे, सातवे और ग्यारहवें स्थान में शनि मध्यम बल वाला होता है । त्रिकोण में केन्द्र में और ग्यारवे स्थान में रहा हुआ गुरु ( बृहस्पति ) बलशाली समझा जाता है । तीसरे, छठे, नौवें और ग्यारहवें स्थान में स्थित शुक्र निर्बल होता है । अत एव शुक्र का अस्त होने पर भी दीक्षा ग्रहण करना प्रशस्त माना गया है, ऐसा कई आचायों का कथन है T (८) लग्न-विचार दीक्षा अंगी४२ ४२वामां मिथुन, सिंह, उन्या, वृश्चि४, धनु, भ४२, लमने भीन-सग्न शुल छे. जाडीना यार त्यान्य छे. (९) श्रह-विचार દીક્ષાલગ્નમાં શનેશ્ર્વર મધ્યમ ખળવાળો ગુરૂ ખલશાળી અને શુક્ર ખલહીન હાય તેા દીક્ષા આપવી જોઇએ, ખીજા, પાંચમા, છઠ્ઠા, સાતમા અને અગિરમા સ્થાનમાં શનિ મધ્યમ અળવાળો હોય છે, ત્રિાણુમાં કેન્દ્રમાં અને અગિરમા સ્થાનમાં રહેલા ગુરુ (બૃહસ્પતિ) ખળશાલી સમજવામાં આવે છે,
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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