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________________ आचारचिन्तामणि- टीका अवतरणा ४५ शकुनि - चतुष्पद - नाग - किंस्तुघ्ननामानि करणानि तु कृष्णचतुर्दश्यमावास्या - शुक्लप्रतिपद्योगभावित्वात्याज्यानि । अवशिष्टे द्वे करणे स्त्रीविलोचनगरादिसव्ज्ञके सामान्ये, इति साम्प्रदायिकाः । यत्तु गणिविद्याप्रकीर्णककृतश्चतुष्पदं नागं चेति द्वे करणे निष्क्रमणे प्रशंसन्ति, यथा - " नागे चउप्पर यावि, सेहनिक्खमणं करे " इति । तन समीचीनम् निष्क्रमणेऽमावास्यायाः प्रतिषिद्धत्वेन नियमतस्तद्योगभाविनोस्तयोः प्राशस्त्याऽसंभवात् । 1 शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न नामक करण कृष्ण पक्षको चतुर्दशी, अमावास्या, शुक्लपक्षकी प्रतिपदा के योगसे भावित होने के कारण त्याज्य हो जाते है । शेष दो करण स्त्रीविलोचन और गरादि नामक साधारण है । परम्परा को जानने वालों का यह मत है । T गणिविद्याप्रकीर्णककारने दीक्षा के विषय में चतुष्पद और नाग नामक दो करण प्रशस्त माने हैं, उन्हों ने कहा है कि- "नागे चउप्पए यावि सेहनिकखमणं करे" अर्थात् नाग और चतुष्पद नक्षत्र में निष्क्रमण करना चाहिये, अर्थात् शिष्यको दीक्षा देना चाहिए, उनका यह कथन समीचीन नहीं है, कारण यह है कि निष्क्रमण में अमावास्या निषिद्ध मानी गई है, इसीलिये अमावास्या के योग से भावित उक्त दोनों करणों का प्रशस्त होना है । असम्भव શકુનિ, ચતુષ્પદ, નાગ અને કિંતુઘ્ન નામના કરશુ કૃષ્ણ પક્ષની ચૌદશ, અમાવાસ્યા, શુકલ પક્ષના પડવાના યાગથી ભાવિત હાવાથી ત્યાજ્ય બની જાય છે. બાકી એ કરણ સ્ત્રીવિલાચન અને ગર્દિ નામના સાધારણ છે. પરમ્પરા જાણવાવાળાના આ પ્રમાણે મત છે. ગણિવિદ્યાપ્રકીર્ણ કકારે દીક્ષાના વિષયમાં ચતુષ્પદ અને નાગ નામના એ ४२खाने उत्तम मान्या छे. ते उछे है:- “ नागे चउप्पर यावि सेहनिक्खमणं करे " નાગ અને ચતુષ્પદ નક્ષત્રમાં નિષ્કમણુ કરવુ જોઈએ, અર્થાત્ શિષ્યને દીક્ષા આપવી लेडो, तेसनु या उथन मरामर नथी, अय मे छे है-निष्कुभाशुभां दीक्षाभांઅમાવાસ્યા નિષિદ્ધ માની છે, એટલા માટે અમાવાસ્યાના ચેગથી ભાવિત ઉપર કહેલા અને કરણા ઉત્તમ હાય તે વાત અસંભવ છે.
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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