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________________ अध्ययन चौवीसमुं... [३७१, संवच्छरेण होहिंति, अभिणिक्खमणं तु जिणवारदाणं; तो अत्थि संपदाणं, पव्यत्ती पुव्वसूराओ। १ (१००८) एगा हिरण्यकोडी, अहेव अणूणया सयसहस्सा; सुरोदयमादीय, दिजइ जा पायरासोत्ति। २ (१००५) तिष्णेव य कोडिंसया, अहासीतिंच होति कौडीओ, असियं च सयसहस्सा, एयं संवच्छरे दिण्णं । ३ (१०१०) वेसमणकुंडलधरा, देवा लोगंतिया महिडीया बोहिंति य तित्थयरं, पण्णरस्ससु कम्मभूमीसु. । ४ (१०११) बंझमि य कप्पंमि य, बोदुव्वा कण्हराइणो मज्झे लोगंतिया विमाणा, अडसुवत्था असंखेज्जा। ५ (१०१२) एते देवणिकाया, भगवं बोहिंति जिणवरं वीरें सबजगजीवहियं, अरहं तित्थं पव्वत्तेहि । ६ (१०१३) गया ? (१००८) २ (१००९) [ दोहरा.] वपीते लेनार छे, दीक्षा जिनवरराय तेथी सूरज ऊगतां, दान प्रवृति कराय, प्रतिदिन सूर्योदय थकी, पहोर एक ज्यां थाय एक नोडने आठ लाख, सोना म्होर अपाय, वर्प एकमां त्रणशो, अने अठयागी क्रोड एंसी लाख यहोरनी, संख्या पूरी जोड. कुंडळधारी वैश्रमण, बळी लोकांतिक देव. कर्मभूमि पंदर विपे, प्रतियोधे जिनदेव.. ब्राह्म कल्प मुरलोकमां, कृष्णराजीना मांहि असंख्यात लोकांनिको-तणा विमान कहाय. ए. देवो जिन वीरने, समजाये ए वात सर्व जविहित तीर्थ तुं, प्रदर्याच साहान्. ४ (१०११) ५ (१०१२)
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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