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________________ आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर. इमस्सचेव जीवियरस परिबंदणमाणणपूयणाए, जाइमरणमोयणाए, दुक्खपडिघायहेडं। (७) एयावंति सव्वाति लोगसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा भवंति। (८) जस्सेते लोगंसि कम्मसमारंभा परिणाया अवंति, से हु सुणी ति बेमि । (९) [दितीय उद्देश: अट्टे लोए परिजुण्णे दुस्संबोहे अविजाणए; अस्सिं लोए पव्वइए तत्थ तत्य पुढो, पास, आतुरा परिताउति । (१०) ५ ब्रवीमि २ आर्त : ३ अस्मिन् (ए क्रियाओमां मागसो,) आ शरीरने वधु टकाववा माटे, कीर्ति मेळववा माटे, मान पामवा माटे, अने खान पान तथा धनादिकना माटे (मवर्ने छे.) (७) (ए प्रमाणे) आखा लोकयां ऊपर वत्ताज्या तेटलाज क्रियाना भेदो जाणवाना छे. (८) (उपसंहार) (समस्त वस्तुना जाणनार भगवान् केवळ ज्ञानथी साक्षात् जोइने कहे छ के) जेणे ए क्रियाना भेटो (ऊपरनी जणावेली वे परिज्ञाओथी ) शुद्ध समगेला होय, तेज, कोने समीन तेना कारणाची दृर रहनार मुनि जाणवो.) ए प्रमाणे (हेजंबू ए सघळु हुँ भगवान् पासेयी सांभळीने तने) कहूंछ.(९) वीजो उद्देश. (पृथ्योफायनी हिंसानो परिहार.) आ जगत्मांना जीवो (विषय अने कपायथी) पीडायला छे, वधी रीते हीन याला छे, अने घणी मुगीवते समजी शके तवा वनेला छे, (कारण के) तेत्रो अजाण छे(अने एवाज होवायी,) तेओ अधीरा पहने गरीव पृथ्वीकायना जुदा जूदा खपमा ते पृथ्वीकायन संताप्या करे छे. (१०) ।
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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