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________________ आचाराङ्ग सूत्रम्. प्रथमः श्रुतस्कन्धः शस्त्रपरिज्ञानामकं प्रथम मध्ययनम् (प्रथम उद्देशः) सुयं मे आउसं, तेणं भगवया एवमक्खायं । (१) श्रुत स्कंध पहेलो अध्ययनर पेहेलं. शस्त्र परिज्ञा. अथवा भाव शस्त्रांनी समजा पेहेलो उद्देश - (आत्मपदार्थ ४ विचार तथा कर्मबंध हेतुभ विचार.) (आत्मपदार्थ विचार.) ( सुधर्मस्वामी जंबूने ७ कहेछे) हे दीर्घ आयुष्यवाळा जंबू, में (श्रमण भगवान महावीर ८ पासथी) सांभळेलुं छे; ते भगवान् आ प्रमाणे वोल्या हता.(१) १ श्रुतस्कंध एटले सूत्रनो भाग. २ अध्ययन एटले अध्याय. ३ शस्त्र वे जातना छे:-द्रव्य शस्त्र अने भाव शस्त्र द्रव्य शस्त्र तरवार विगेरे. भाव शस्त्र पापमा प्रवर्तना मन वचन अने शरीर. अही ए भाव शस्त्र लेवां, तेनी परिजा एटले समज. परिना वे छे-न परिज्ञा, अने प्रत्याख्यान परिज्ञा, ज्ञ परिना एटले ए क्रियाओ कर्न बंधनी हेतु छे एई बरोबर समज. अने प्रत्याखान परिना एटले नेई सय ने त ओनो त्याग करचो. ४जीव. ५ कर्ग बांधवानां कारणो. ६ श्री महावीर प्रभुना पीचमा गणधर, सुधर्म स्वागीना शिष्य. ८ परोपकानर्थ महाश्रम लेनार. ९छल्ला तीर्थकर.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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