SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्ययन तेरम. २८५] उवचितमंससोणिए ति बा, बहुपडिपुण्णइदिए तिरा, एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा । (७८९) रो सिक्ख वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पेहार णो एवं वदेज्जा, तंजहा, गाओ दोज्झा ति वा, दम्मा इ वा गोहरा, वाहिमा ति वा रहजोग्गा ति वा । एयप्पगारं भासं सावज्जं जाब जो भालेज्जा । से भिक्खू वा भिक्षुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पहाए एवं वदेज्जा, तंजहा:-जुवं गवे ति वा, घेणू ति बा, रसवति ति वा; हस्से ति वा, महल्लए ति वा, महब्बए ति, संवाहणे ति वा । एयप्पगारं भासं अस्वावजं जाव आभिकख भासज्जा (७९१) से भिक्खू वा भिक्षुणी वा तहेव गंतु मुजाणाई पच्चयाई व'णाणि वा, रुकखा महल्ला पेहाए णो एवं वदेजा, तंजहा:--पासायजोग्गा लाछे, या लोहीमांसे सुधरेला छे, गा लगभग संपूर्ण अंगवाय थया छे, आवी री तनी थापा निर्दीप छे माटे ते बोलवी. [७८९] मुनि अथवा आर्याए जूदी चैदी तरेहनी गायो अथवा बळदो जोड़ने एवं नाहे वोलंबु क आ गायो दोहवा लायक छ, अथवा आ वायरडाओ खेडवा लायक छ, अपरा गाडीमां जोडवा लायक छ, आवी रीतनी भापा पाप भरेली छे, याटे नहि वापरवी. [७९०] मुनि अथवा आर्याए जूदी जूदी तरेहनी गायो अथवा पळदो जोइने काम पडतां ए, बोलघु के आ चळद युवान छे, अथवा आ गाय दूधवाळी के रसवाकी छ, या आ वळद नानो छ, या मोहाटो छे, या भार उपाडवा समर्थ छ, थापी रीतनी भाषा निदाप छ, मादे बोलत्री. [७९१] मुनि अथवा जाए, पाग पर्वत के वनमा जइ न्यां रहेया मोहांटा झाडाने जोइ एयु नहि पोलवू के आ झाडो हवेस्सीना कामना छ या दरवाजाना कामना
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy