SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ i अध्ययन after. [ द्वितीय उद्देश: ] गाहावई गायेंगे सुइसमायारा अवंति, भिक्खू य असिणाणाए मोयाममायारे से तदुग्बंधे पडिले पडिलो यावि भवति । जं पुष्वकम्मं तं पच्छाकणं, जं पच्छाकम्मं तं पुष्वकम्मं ते भिक्खुपडियाए बट्टमाणे करेजा वा नो करेजा था । जह भिक्खूर्ण पुव्योवदिट्ठा जाव जं तपगारे उवस्सए जो ठाणं वा जात्र चेतेज्जा । (६६२) [२२५] आयाण मेयं भर गाहावतिहिं सद्धिं संवसमाणरसः - इह दलु गाहारतिर अप्पणी सअट्टाए विरूवरूवे भोयणजाए उवखडिए १ कायिकाव्यापारवान्, कार्यवशात्. न बीजो उद्देश. नेव थता होपो तथा तेणे क्या क्या स्थळे नसे. गृहया ने ही पलो के. घणाएक गृहस्व पालनारा अयान रहित होवाची नया बा यो पण सुनि कर्म करता पापी) अपूर्ण दुर्गे यी ते गुणाला पडे के टी समारोप के से केनन के के ग्राम
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy