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________________ प्रस्तावना. स्थिति आववानुं खास कारण मतभिन्नताछे. जैन वर्गना जुदा जुदा सप्रदायवालाओ पोतानी सत्यता सावीत करवाना प्रवाहमा तणाइ भइ जुदा जुदा शब्दोना अर्थ पोतानी मरजी मुजब करेछे, जेथी वेनी खरी खुवी अद्रश्य थायछे. जैन धर्मने उच्च स्थितिए लाववा एकत्र थइ ज्ञाननी वृदि करवानी बात तो एक वाजुए रही, पण आम शब्दार्थ फेरवी मांश माहे फ्लेश करी विवाद उपजावी जैनना कानुनोथी विपरीत वर्ती जैन नापने कलंकित करेछे. अर्वाचीन समयमां आवी स्थितिमां केळलायलो वर्ग कया फांटाना पुस्तको वांचवा तेना गुंचवाडामां पडेछे अने छाटे स्वधर्म नो त्याग करी परधर्म अंगीकार करेछे. आवी कटंगी स्थिति मत भिन्नताथी दिन परदिन वृद्धि पामेछे अने परिणामे दुनियापर दिग्विजय मेळवेल जैन धर्मनी पडतीमां वृद्धि करेछे. परंतु तेमां सुभाग्ये हालना विदेशी विद्वानोए-ओरीएन्टल स्कोलरोए-जैन फिलोसोफी प्रकाशमां लाववाने जे स्तुत्य प्रयास मांडयोछे ते जैन धर्मनी पुनःप्रतिष्ठा प्राप्त करवानी आशा ना किरणरुपछे. कारण के तेओनां भाषांतर कोइपण रीत पक्षपाती तेमज मतभिन्नताना पोषणरुप नथी. परंतु जो स्वदेशी विद्वानोए भाषी रीत भाषांतर कर्या होत तो नक्की तेओ शब्दार्य करवामां पोताना खास संप्रदाय तरफ दोराया होत. ज्ञानीनो मार्ग स्याद्वादळे तेथी तेमा मतभिन्नता होवी असंभविवछ तेमज ते मार्गने आचरनारा खरा विद्वानोए पण तेवा कदाग्रही कंटाळी जंगलमा जइ आत्म साधन करेलुछे एवं जैन तवारीख उपस्थी सावीत यइ शकेछे. आनंदघनजी जेवा महात्माए "पटदरिशण जिन अंग भणीज." विगेरे शब्दोमां श्री नमीश्वर भगवाननी स्तुति करतां ज्ञानीना स्यादनाद मार्गनेन अक्षरशः कबुल करेलछे. श्वेतांवरी (देरावासी-स्थानकवासी) अने दिगंवरी सर्व मसचाळाए एकत्र य, जोइए. ज्ञानीना वाक्योना विपरित अर्थ करवायी ज्ञानावरणीय कर्म बंधायछे, तेथी मतभिन्नता दूर करी सर्व एकत्र पनो अने स्वधर्मनी थती पायमालीनो उद्धार करो अने पुर्वे जेम ते सर्वोत्तम गणातो तेवीम रीने पुनः सर्वोत्तम गणाय तेवो एकत्र थइने प्रयास करो. एकम मागाप ना जुदा जुदा पुत्रो कुसंपी थाय तो ते कुलनो क्षय नीक एम समबीने
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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