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' अध्ययन दसमुं. णिक्खमणपवेसाए, वायणयुच्छणपरियहणाणुपेहाए धम्माणुओगचिंताए, सेवं णच्चा तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिपडियाए णो अभिसंधारज्जा गमणाए (५६१)
से भिक्खू वा (२) गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविठे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा, मंसाइयं जाव संमेलं वा हरिमाणं पेहाए अंतरा से मग्गा अप्पंडा जाव अप्पसंताणगा, जो जत्थ बहबे समणमाहणा जाव उवागमिस्संति, अप्पाइण्णा वित्ती, पण्णस्स णिक्खमणपक्साए पण्णस्सा वायण-युच्छण-परियणाणुपेहाए धम्माणुओगचिंताए, सेवं णच्चा तहप्पगारं पुरेसंखडि वा पच्छासंखडि वा संखडिपडियाए अभिसंधारेज्ज गमणाए (५६२)
से भिक्खू वा (२) गाहावइकुलं जाव परिसित्तुकामे से ज ण जाणेज्जा खीरािणियाओ गावीओ खीरिज्जमाणीओ पेहाए असणं वा (४) उवसंखडिज्जमाणं पेहाए पुरा अप्पजूहिए, सेवं णचा णो गाहावइकुलं
पठनपाठन के धर्मोपदेश अटकी पडवाना जणाय तो तेवा स्थळे ते मुनिए जवानो इरादो नहि करवो. [५६१]
पण जो तेवा मांस मत्स्य, के मप्रधान, विवाहभोजन, मृतकभोजन, या प्रीतिभोजनमा मुनिने कोइ तेडी जतुं होय अने मुनिने मार्गमां कशी वनस्पति, जळ, के जीवनतुं नहि जणाय तेमज त्यां श्रमण-वह्मणादिकनी,बहु भीड पण नहि होथ नेथी मुनिने त्यां जg आवयुं मुलभ होय अने पठनपाठनादिक पण थइ शके तो तेवा स्थळे [कारणयोगे] मुनिए भिक्षार्थे जवू पण खरं. [५६२] ____ गृहस्थना घरे सुनिए जतां त्यां ए वखते गायो दोवाती होय अथवा भोजन रंधातुं होय अथवा तैयार थइ रघु छतां हजू वीजा याचकोने अपायुं नहि
१ मुनि रस्ते चाली थाक्यो होय या मांदगीथी उठ्यो होय या दुर्भिक्ष होय विगैरे कारणयोगे मांसादिक त्याग करवा समर्थ मुनिए त्यां जवू एम टीकाकारे जणाव्युंछे,