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________________ अध्ययन दशमुं. गमणाए (५४८) ___ एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणाए वा सामग्गिय, जं सव्वट्ठू हिं समिते सहिते सयाजये-त्ति बेमि (५४९) (तृतीय उद्देश :) से एगया अण्णतरं संखडिं आसित्ता पिवित्ता छड्डेज्ज था वमेज्ज वा, सुत्त वा से जो सम्मं परिणमज्जा, अण्णतरे वासेदुक्ख रोयातके समुप्पज्जेज्जा, केवलीबूया ' आयाण मेयं.” (५५०) मनुष्यनी हयातीमां अने मनुष्यना मरण पछी कराती संखडिओमां भाजन लेचा माटे नहि जवू. [५४८] मुनिनुं एज कर्त्तव्य छे के हमेशां सर्व पदार्थोमां समता राखी पवित्र गुणो साचवतां थकां यत्नवंत थइ वर्त्त [५४९] त्रीजो उद्देश. (मुनिने जमणवारमा जवाथी थता गैरफायदा) जो मुनि संखडिभोजन करश तो कोइ वखते तेने तेनार्थी चमन के विशचिकाना दुःखमा ऊतर पडशे. अथवा तो खाधेलुं अन्न रुही रीते न पचतां कुष्टं के शूळादिक रोग उत्पन्न थशे. माटे केवळी भगवान जणावे छे के संखढिभोजन कर्मवंधनो हेतु छे. [५५०] .
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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