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________________ ___ अध्ययन दसमुं. [१५९] वा, [५२९] से भिक्खू वा, भिक्खुणी बा, बहिया वियारभूमि वा, विहार भूमिरे वा, णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा णो अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा, परिहारिओ वा अपरिहारिएण सहि बहिया विचारभूमि वा, विहारभूमि वा, णिक्खमेज वा पविसेज्ज वा [५३०] ___ से भिक्खूवा [२] गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धि, गामाणुगामं दुइज्जेज्जा (५३१) ' से भिक्खूवा [२] जाव पविठू समाणे से णो अण्णउत्थिअस्स वा, गारत्थियस्स वा, परिहारिओ अपरिहारिअस्स वा; असणं वा [४] देज्जा वा अणुपदेज्जा वा [५३२] से भिक्खू वा [२] जाव पविद्वे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा अ. १ संज्ञाव्युत्सर्गभूमि. २ खाध्यायभूमि. ३ अनुप्रदापयेत् परेण. के नीकल्धुं नहिं. (५२९) एज मुजब दिशाए तथा स्वाध्यायस्थळमां पण अन्यतार्थिक, के पासत्थाओ साथे आवq के जंबु नहिं. [५३०] वळी ग्रामानुग्राम विचरतां पण अन्यतीर्थिक गृहस्थ अने पासत्थाओ साथे विचरखं नहिं. [६३१] ___ तथा ए त्रणेने मुनिए आहार देवो के देवराववो नहि. (५३२) - गृहस्थे जे आहार निग्रंथ साधुनी सारु एटले के अमुक साधर्मिक साधुने उद्देशीने छकायनी हिंसा करी तैयार कर्यों होय, वेचातो लीधो होय, उधारे लीयो होय कोइना पासेयी झूटावी लीधा होय के मालेकनी रजा वगर लइ राख्या हेय तेवो आहार ते गृहस्थ कोइ पण मुनि के आर्याने आपवा मांडे तो, तेमणे जाणतो छतां ते आहार ग्रहण नहि करवो. अगर जो के ते आहार ते गृहस्थे पोते कों होय अथवा वीजाए कयों होय, घरथी बाहेर काढयो शेय अथवा न काढयो
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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