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________________ {१४२] आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर. आवेखणी--समार-पवासु', पणियसालासु ४एगदा वासो; अदुवा पलियटाणेसु पलालजे.सु एगदावासो ।२। [४८५] आगंतारे आरामा गारे णगरे वि एगदा वासो; सुसाणे सुण्णगारे वा, रुक्खमूले वि एगदा वासो.।३। [१८६] एतेहिं मुणी सयणेहिं, समणे आसीं पतरस वासे; राई दियंपि जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति ।। [४८७] णिदंपि णो पगामाए, सेवइ य भगवं उट्टाए, जग्गावती य अप्पाणं, इसिंसति । य अपडिने ||४८८) - १ शून्यं गृहं । कुडयाद्याकृति २ पानीयशाळा. ३ पण्यशालाषु हट्टेषु ४ अयस्कारकुड्यादिषु ५ मंचोपरिव्यवस्थितेषु तदध; ७ प्रकर्पण त्रयोदशं वर्ष यावत् ८ शेते। कोइ वरखते भगवान निर्जन झूपढाओमा; झुपडीओमां, पाणी पीवा माटे करेला परवामां के हाटामा रहेता तो कोइ वखते लुहार विगैरेनी कोडोमां अथवा घासनी गंजीओयाँ नीचे रहेता. [४८५] कोइ वखते परामां, वागमांना घरोमां के शहरमा रहेता तो कोइ वरवते मशाण, सुनां घर के झडनी तलेटीमा रहेतां. [४८६] ए रीते एवा स्थळोमा रहेतां थकां ते श्रमण मुनि प्रमाद परिहार करी समाधिमां लीन थइ बरोबर तेरमा वर्ष लगी पवित्र ध्यान ध्याता रह्या. (४८७) । दीक्षा लइने भगवान बांय पण वधु निद्रा लेता नहि.१ अने हमेशां पोताने जगावता रह्या. क्यांक जरा सूता तो पण त्यां निद्रा करवानी इच्छा नहि करता. [४८८ १ फक्त वार मां अस्थिकग्राम (वढचाण) पामे काउसग्मा रह्या इता ते वखते एक मुहुर्त मात्र निद्रा लीधी हती एम टीकाकार जणावे छे..
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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