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________________ [१३१] अध्ययन आठमुं. अणाहारो तुअहेज्जा, पुढो तत्थ हियासए; णातिवेलं उबचरे, माणुस्सेहिं वि हुए | ८ | [ ४४४ ] संपप्पगा य जे पाणा, जे उ उड्ड-महे-चरा; भुंजंते मंससोणीतं, ण छणे ण पमज्जए | ९| (४४५ ] पाणा देहं विहिंसंति, ठाणातो ण विउम्भमे; आसवेहिं विवितेहि, तिप्पमाणो हियासए |१०| गंथेहिं विवित्तेहिं, आउकालस्स पारए; [ ४४६ ] पग्गहिअतरगं' चेयं, दवियस्स वियाणतो | ११ | (४४७) अयं से अवरे धम्मे, णायपुत्तण साहिए; १ इत इंगितमरणसूत्रं प्रगृहीततरकं श्रेष्टतरमित्यर्थः संथारा पर आहार त्याग करी (अणसण करी) मुनिए शयन करवुं. अणसणम जे परीषद के उपसर्ग [दुःख तथा संकट ] ऊपजे ते सहन करवां. बहु मनुष्यो तरफधी उपसर्ग थाय तो मर्यादा उल्लंघवी नाह. (आयामां नो पडं.) [४४४] फरता जंतुओ' पक्षिओ २, रापदि जंतुओ, मांसभक्षी प्राणीओ, अने Taarat प्राणिओ४ अणसणमा रहेल सुनिने उपद्रव करे तो सुनिए हाथ विगेरेथी तेमने मारखं नहि अने रजोहरणादिकथी शरीर प्रमार्जवं पण नहि. [४४५ ] जंतुओ मारुं शरीर खाए छे पण यारा गुणों नथी खाता, एम विचा सुनिए ते ठेकाणेथी ऊठी वीजे स्थळे न जवं, आश्रमो छांडीने आनंदयां र सर्व सहन कर. बळी जूदा जूदा शास्त्रोने सांभलतां अथवा जूदी जूदी जातनो परिग्रह छांडतां पोतानुं आयुष्य पूरुं करवु. [४४६ ] हवे जे संयमी मुनि गीतार्थ होय तेवा मुनि इंगितमरण नामनुं अणसण करे छे. ते अगसण घणी कठिन रीते लेवाय छै. (४४७) १ कीडिओ प्रमुख. २ गीधविगेरे ३ सिंहादि ४ मछर जेवा. ५ कपाय विगेरे पापना हेतुओ. ६ जघन्यथी पण नवपूर्वी होवा जोइए.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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