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________________ बन गई पन्द्र इंसलूलि पल्टामा रो र विदे। पुद्रा को नियते वियोव कम । किन तेति दुलितं नवति । (३३) बल्वयन हु ना सुनेपुरले सर्ने एकति. हे तनवता विज्ञायता सहन दिने, उतरने पर बट। पलिय ये, उड्छ, नये अतहि । तं नेहावी तिचा इन् । __ अहन्दी तुति पानकले अन्ती अनुयो हप प्रहमति देश विवालो दिन नयनाला : शुरू। से ले ने के दरिहर देन बाबर के देवाने या या नदी भवाने नमः हवं नशीलने वाली है. का मार को परोपी हरले काम संपल्या ऋयार के कई कही न कहं दिसाव रहुँन्दी ) भवन्त, रा. विकास के पन्तपश लेक एन. विद्धन का पल रहलने किन्नर कर र अनिल ने महल दी है वो मानविन कालो कि म मा रहेरे, म बुझेन ननर ने ही क हान मी डर बने नुको कालेजचे है पुर हुँने बाले पलेस ने मई करत करतो रको हरेक किले मन दे. अने दे कर ले. अर जमक र ने नई पड़ गई एकदा "
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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