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________________ अध्ययन छटुं. अहेगे धम्ममादाय आदाणप्पभिति सुपणिहिए चरे अप्पलीयमाणे दढे । (३५१) सव्वं गिाई परिण्णाय । एस पणते महामुणी । (३५२) अइअच्च सब्बतो संगं “ण महं अस्थिति इति एगो-ह-मसि" जयमाणे एत्थ विरते, अणगारे, सचसो मुंडे, रीयंते, जे अचेले परिसिए संचिक्खति ओमायरियाए। (३५३) से आकुढ़े वा, हए वा, लुंचिए वा, पलियं पकंथे, अदुवा पकंथे, अतहेहिं सफासोह, इति संखाए एगतेर अन्नयरे अभिन्नाय" १ सतिष्टति २ अवमौदर्या ३ प्रकथ्य ४ स्वकृततकर्मफळमितिसंव्याय ५ अनुकूलान् ६ प्रतिकलान् ७ ज्ञात्वा से पुरुष वधी आसक्तिओने दुःख करनारी जाणी तेथी दूर रहे छे तेज महामाने संयमी जाणवो. [३५२] माटे मुनिए सर्व प्रपंच लोडीने, “ मारुं कोई नयी, हुँ एकलो ज छ," एवी भावना धरी पापकियाथी निवृत्त थइ मुनिना आचारमा यत्न करता थकां, व प्रकारे मुंडित थइ अचेल' बनी संयममां उत्साहवान रही परिमित आहार लइ पेटने अपूर्ण राखता रहे. [३५३] ज्यारे कोइ पुरुप युनिने तेना प्रथमना निंदित कामो वोलीने अथवा गमे तेम वेअदव बोलो वोली तथा खोग आरोपो चडावी निंदवा मंडे, अथवा मुनिना अंग उपर हुमला करे, मारे के बाल खेंचे, त्यारे मुनिए पोताना कपिला समान फळ आवेटु जागी तेवा कंटाळो आपनारा प्रतिकूळ परीपटाने तथा स्तुतिविगेरे म जीनकाल्पिक चोय नो मर्वया वस्न रहित बनी अने स्थविर कल्पिक हाय तो अल्प पत्र धारण करी, २ भावलग्न. -
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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