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________________ [८०] आचारांग-पूळतथा भाषान्तर, अभिकममाणे पडिक्कमाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियदृमाणे संपलिमज्जमाणे। (३०६) एगया गुणसमियस्स रीयता कायसं-मणुचिन्ना एंगतिया पाणा उद्दयंति; इहलोग वेयणवेज्जावडियं । ज आउट्टीकयं कामं तं परिन्नाय २विवेग-मेति । एवं से अप्पमाएणं विवेगं किति वेदवी । (३०७) से पभूयदंसी पभूयपरिन्नाणे उवसंते समिए सहिते सयाजए दुटुं विप्पडिवेदेति ४ अप्पाण:-" किमेस जणो करिस्सति । एस से परमारामे जाओ लोगंसि इथिओ.” मुणिणा हु एतं पवेदेितं । (३०८) उव्वाहिज्जमाणे गामधम्महिं. अवि णिव्वलाएस, ७ अवि ओ १ रीयमाणस्य सम्यगनुष्टानवतः २ प्रायश्चितं. ३ कीर्तयति. ४ विप्रतिवेदयति. ५ स्त्रीजन: ६ उद्धाध्यमान: ७ निबलाशक: निर्वलभोजी " स्यादितिशेष तां थकां भूमंडळपर भयता रहे. एंटलंज नहि पण जतां, आवतां, देशतां, ऊठतां, वळतां, अने प्रमार्जन करतां सर्वदा गुरुनी अनुज्ञा लइ वर्त. [३०६] कोई वखते एवा सद्गुणी मुनिए रुडी रीते वर्त्तता छतां तेना शरीरसंस्पर्शथी कोइ जंतु मरण पामे छे तो तेनो तेने आ भवयां क्षय थइ शके एटलो कर्मबंध पडे छे. अने जो आकुट्टियो जाणी जोइने कायसंघटनादिकवडे कंइ कर्य बंधाय छे तो तेना माटे योग्य प्रायश्चित आचर्याथी कर्म क्षय थायछे. ए प्रायश्चित अप्रमादिपणे आचर्याथी कर्मक्षय थाय एम आगमना जाण पुरुषो बालेछ. [३०७] माटे दीर्घदर्शी, बहुजानी, क्षमावंत, पवित्र प्रवृत्तिवंत, सद्गुणी, अने सदा यत्नवंत सुनिए स्त्रीओने देखी विचार के एस्त्रीओ मारुं शुं कल्याण करवानी छ ? तथा आ दुनिआमा स्त्रीओ ज अतिशय चित्तने मुंझावनारी छे. ए वधू मुनिए [वीरमभुए] जणाव्यु छ. [३०८] विपयोथी जो मुनि पीडाय तो तेणे निवळ आहार करवो, पेटने अपूर्ण
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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