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________________ अध्ययन : पांचम आवंतीनान्ना प्रसिद्ध लोकासारनामकं पंचम मध्ययनम् (प्रथम उद्देशः) आवंती केआवंती लोयसि विप्परामुसंति अदाए अणदाए वा। एतेसु चेव विप्परामुसति । गुरू से कामा । तओ से मारस्स अंतो। जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे , णेव से अंतो, णेव से दूरे । (२६४) १ हिंसाकुर्वतीत्यर्थः २ समुत्पचंतइत्यर्थः ३ मोक्षोपायात् ४ विषयसुख स्य ५ विषयसुखस्य. अध्ययन पांचमु. लोकसार. पहेलो उद्देश. [माणिनी हिंसा करनार, विपयो माटे आरंभमा प्रवर्तनार, तथा विपयोमा आसक्त जे होय तेने मुनि न गणो.] . जे कोइ आ जगतमा समयोजन अथवा निष्पजन जीवानी हिंसा करेछे तेओ पाछा तेज जीवोनी गतिओमां जइ अपनेछ. एवा अतत्वाशी जनोने विषय सुखो छोडाववां भारे सुरखेल पहेछ, माटे तेओ मरणनी परंपरायी छूटी शकता : नथी अने एम होवायी तेओ मोसना मार्गथी या मुखथी दूर रहेला छे. तेथी तेओ नधी विषयसुखना अंदर, अने नयी तेनायी वेगळा. [२६४] १ आ अध्ययननुं चीजें नाम आवती छे.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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