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________________ सुस्वागतम् श्री महेन्द्रकुमार मस्त तृतीय विश्व जन सम्मेलन, अद्भुत कितना प्यारा है विश्वव्यापी नवचेतन के, भावी की उज्जवल धारा है वैज्ञानिक प्राधार, समन्वय, ज्ञान, योग की नीवो पर वीर वचन अमृत की बूंदे, वरस पडे सब जीवो पर आध्यात्म की ठोस घरातल, मांग रहा जग सारा है तृतीय विश्व जैन सम्मेलन, अद्भुत कितना प्यारा है । विषम युग की चकाचौंध मे, भटक रही है मानवता ज्ञान पिपासा भर नही पाती, क्षुब्ध हुई है चेतनता जिन प्रतिपादित अर्हत पथ ही, सच्चा एक सहारा है तृतीय विश्व जैन सम्मेलन, अद्भत कितना प्यारा है। अविचल कला, ज्ञान परिपूर्ण, जिन मन्दिर और जिन आगम सिद्धाचल की ही ज्योति से, करे सुशोभित सिद्धाचलम धरती के उस भाग में उभरा, तीर्थ नया हमारा है तृतीय विश्व जैन सम्मेलन, अद्भुत कितना प्यारा है ॥ जिन अनुयायी मिलें, विचारें, परिभाषामो के परिवेष पावन वीर प्रभु की वाणी, को फैलाएँ देश-विदेश 'मस्त महेन्द्र' प्राज समय की मांग का यह ही नारा है ततीय विश्व जैन सम्मेलन, अमृत कितना प्यारा है।
SR No.011085
Book TitlePerspectives in Jaina Philosophy and Culture
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages269
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size12 MB
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