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________________ APPENDIX A 61 तहबि अभाचे दाहिद तस्स अहावे हि गोदीय । तस्स अहावे देउरसु सतबरिस प माणयं यं ॥१८॥ बूढं वा अब्बूढं गिण्हीया पंचजण सक्ती। . जो एगुद्धरेहिय कमदो भूमीहु पुत्र णट्ठाई ॥१९॥ तुरियं भायं दिण्णय लहदिय अण्णोहु सधस्स । णिय जणय धणं जं बिहु णियबदब मघादए इतं दब्बं ॥२०॥ दाया देउ ण दिजई विजालद्ध धणं जहि । जइ दिण्ण धणं जं विहु भूसण वत्थादियं व जं अण्णं ॥२॥ गिणहेदि ख दायादा पडंति णरये ण हा चावि । णियकारिय कूवाइय भूसण वत्थुय धणोबि ।।२२।। णिय पवहि होई यह अण्णेये तस्स दायदा णाधि । पायाहु पितदव्वं णिय यं चउ वजियं तहा सेयं ॥२३॥ णिय पिउमहे जे दबे भाउजण णीछिया सुहवे । धपणं जं अबिहतं तहेव तं समंसमंणेयं ॥ २४ ॥ धाई णिवंटावर सामित दुह तत्थ सरसम्मि । जादे सुदे विमाउ उहि सवणणणिय बहु सरिसो ॥२५॥ पुग्नं पच्छाजादे विभत्त जो सब संगाही। जीविदु पिच्च धोबि हु जम्हि जहा तहादिणणं ॥२६॥ णेह बिसादी तत्यहु गिणह जहुणाबरेण एतत्य । पंचत्तगये जण्ये माया समभाइणी हवे तत्स्थ ॥ २७ ।।
SR No.011057
Book TitleJaina Law Bhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages146
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size5 MB
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