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________________ २३ । रतनपरोक्षक । ॥ चमका चीकनीयां में होई । मध्य चमक विजली वत सोई॥ ॥ सूर्यकिरणसे किरणदिखावे । मर्कत महो नाम सो पावे ॥ ॥छाया आटपांचगुण जाना। वणं चार सत दोष पछांनो॥ ॥ होए रुक्षता रोग दिखावे । एक तर्फ ते पीत लखावे ॥ ॥विसकोट नाम करके सो जानो । शास्त्र संगमृत्यू भय मांनो ॥ ॥ पत्थर संग दिखावे जवही । अव लाखा दूर करे सो तवही । ॥ मलीन होय विनाय कहाव । कर रोग सुख दूर वहावे ॥ ।। श्वेत रंग राजिस मांहीं । सोकर्करकुल नासक तांहीं॥ ! विन सूरत कांतीनहि होई। जठर नाम कर कहिए सोई ।। ॥ दंति जीवका भय प्रघटावे। और नेक विष दोष दिपावे ॥ ॥ ऋउन वर्णका विंदू होई। मृत्यू कार कहिए सोई॥ ॥सात दोष यह शास्त्र दिखाए । आगे गुण पांचों मन भाए॥ ॥दोहरा॥ । निर्मल ल गुरत्व है। स्निग्यत तिन पह चांन । ॥ अर्ज सकत्व सुरंगत्व है। पांचों गुण परमांन । ॥चौयई॥ ॥ गुण संयुत पन्ना जो होई। पाप नास कर कहिए सोई॥ ॥ सर्प आदि विषरोग निवारे । वनधान्य वृद्धि कुल जय शुभ पारे। ।। आगे छाया आठ विचारो । मोर पंख वत आदि समारों। ॥ मोर कंठ वा तोता होई। सबज काच सिवाड वत सोई॥ ॥पीठ ठोंने को सो जानो। श्रीह पुष्पनवीन घास वतमानी॥ ॥ जा प्रकार छोया शुभ होई ! उत्तम पन्ना कहिए सोई॥ ॥ त्रासदोष विन चमक दिखावे। सुंदर घाट रंग मन भावे ॥ ॥ सो अमोल उत्तम है सोई। विष नासक शभ दायक होई॥ ॥जो शुभ लक्षण पन्ना धारे । शुभ संतति नौनि सम्हारे । ॥ आगे घाट नाम सभ जानो। भिन्न भिन्न लक्षण पहचानो । ॥ तावडा घाट मथैला होई। लंबी मणी गोल मणि सोई॥
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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