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________________ । रतन परीक्षक । न अरु धोन्य दूर कर सोई । कारन कर माणिक गुण होई ॥ उरा रंगवत छाया जानो । धूम नाम विजली भय मानो सब छाया त मणिक होई । सर्वस्व नाशकर कहिये सोई ॥ पुरंगा दोय रंग दरसावे । प्रीति भंगकर गुण प्रघटावे ॥ जो कर्करे सो पुरी दार | कलहाकर गुणताहि विचार ॥ लकीर होय सोनी कहावे । वा पंछी पद चिन्ह दिखावे ॥ विनास रोग आपद सो करें है। कहे दोष अब गुण सव पर है ॥ ताकर प्रथम परीक्षा करे। निरवोश निरा मन घरे ॥ ( अथ माणिक परीक्षा माणिक एकमतोल मगवा । सौ गुण दूध नीर वा ल्यावे ॥ माणिक बीच ताहुके जानों। दिखावें रंग सो उत्तम मौनों ॥ वा नांदी का थाल मगांव । मोती तार्क वीन विछावे ।। माणिक मध्य परे जब कोई । सब में रंग सो उत्तम होई ॥ अथवा सीसा एक मंगावे । माणिक शोसे मध्य धरावे ॥ प्रभात समे पर सूरज आगे । किर्ण निकस चौगिर्द लागे ॥ छाया देष परीक्षा होई । उत्तम माणिक लीजो सोई ॥ छाया visa भेद दिखावे । लाली लाल गिदें छाये ॥ अवा माणिक लेवे कोई । कमल कलीपर राखो सोई ॥ कमल फूल शीघ्रखिड जावे । सो उत्तम निरदोष कहावे ॥ अंधेरे वीन नमक जो शर । सो उत्तम निरदोष विचार ॥ वाल सूर्य वत आभा होई । सो उत्तम संग्रह कर सोई । वंच काति इह नाम कहावे । जंहा होए सुख संपत पावे ॥ शत्रु चोर भय रोग निवारे । जहाँ एक नवरतन सारे || निरदोष एक माणिक जो होई। और दोष घुत मानो सोई ॥ उनको दोष असर नहि करे। उत्तम माणिक जह गुण धरे ॥ जो सिंपूर रंगवत होई । स्यमंतक नाम मणो है सोई।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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