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________________ | रतन परीक्षक | , दो० प मुल्क की खान का। हीरा पोत पिछान || जा प्रकार कीमत बढ़ें। आगे और विधान || उत्तम हीरा जो कहा। कोरा प्रथम विचार ॥ वने घाट कीमत वह । सो सब भेद सम्हार ॥ पर्वतिलकड़ी कंवल जहं। तीनों मुख्य विचार ॥ और घाट व कहे। कीमत के अनुसार ॥ ॥चौपाई॥ पर्वघाट नाहै जब कोई । अथ तोल रहित है सोई ॥ आर रुपये स्ती दीजै । पर्व घाट सुंदर लखलीजे ॥ जो कोउ तिलकड़ि दार बनावें । छे आने तौल ताहि रह जाये ॥ बी० द्वादश नगदी दीजिये । प्रति रती मना ॥ मजूरी दे सुंदर सजै । घाट तिलकडीदार || ॥ चौपाई ॥ जो को कंवलघाट बनवा | आने पनि तोल रह जाय । रती बोस रुपेये दोर्जे । कंबलघाट सुंदर लखि लीजे ॥ जाविघाट नेक विन होई । नामभेद आगे सन सोई । कुतवी अरु अठ मास विचारी । है मास विआला चौरस पागे ॥ अट मास तुलामी नामा कहिये। गिर्दा सरं सिंघाडा लहिये || त्रिकोण बदामो नामा होई । घाट एकादस आदी सोई || निरोप घाट कुतवीजनभावै। सवा रती कीमत पात्रे || सवाई तो बड़े ज्यों आये । दूनी कीमत तापर लागें ॥ जो निर्दोष चमक मन भावें । घाट देख कीमत बढ़ जावें ॥ अंग ढंग अरु संग विचारो । चौथा सुंदर रंग निहारो ॥ जामें इह चारों शुभ होई | उत्तम कीमत मानो सोई ।। ܬ AV ( खोटे हीरे की परख ) at० वोटा पनि प्रकार का पत्थर जाती सोय ॥
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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