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________________ । स्तन परीक्षक। ॥ चौपाई ॥ दक्षण गोलकंड के मांहीं । उत्तम हीरा उपजत तांहीं ॥ झाना परना अवर विचारो। वैनानदी आदि मन पारी । पर्वत देस हिमाला होई। उपजन हीरा खानी सोई॥ कंकरा मिट्टी संगावेचारीले आवत निश्चा मनधारी ॥ पाय छान्नी अनि जलपा। कंकर सबजरंग दरसावे ।। सोनिकालमन हर्षित होई। कोगहीरा कहिये लोई ॥ उत्तम गोल कंडका जानो अभिकथान अनिदानक पचानो। रती एक अधिक सो होई । सो पांच ती तक सोई॥ र.पुर कोहार जो कहिये । उपजत जाहिरबान कालहिये। दी. रत्ती दोलछिन में । अति उत्तम सो जांज। जाके सम दूसर नहीं । निर्मल शुद्ध प्रमान ! हैदरावाद नवाव फै। जाइकान को जान। सो भी कल शोमा परे। तोले पांच प्रमान ।। झरने परने का सुनो । सो भी उतम होय ।। रत्ती अधिक विनारिये ।मो रनी तक सोय ।। ॥चौपाई ॥ नानदी बीन जो होई । उत्तमग निकलत सोई॥ लोन रुपेश रत्ती जानो। पांच गया तक तो मानो ॥ नई स्वान अब पैदा होई । केप मुल्क में जानों सोई॥ पैदा अधिक थान अति जानो। दो हजार रनी तक मानो। पेदा अधिक होत अब सोई । रंग जर्दकीमत कम होई॥ निरदोशदोयरत्तीतक जानो। पांच रूपेयो रत्ती मानो ॥ आग दसरदी तक सोई । कीमत वीस रुपयाहीई ॥ नोल बीस रवी तक जानो। सोट रुपैया रती मानो ॥ चालिस रत्ती तक जो तोल । सो माया ली मोल ॥
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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