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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. (१) संजम-संयम-इन्द्रियोंका दमन तो केवल पांचही घर मांगना ( ३ ) और वह करना. भी गृहके निमित्त बनी होतो लेना सर्वदा ध्यान व (७) सच-सत्य-सदा सत्य भाषण क- स्वाध्यायमें मग्न रहना; एकाकी ( अकेला) रना. नहीं रहना. दश पांच जन मिलकर एक स्था(८) सोयं-शौच-शरीर और मन प- ! नमें रहना. ग्रीष्मऋतुमे पर्वतोंक शिखरोंपर, वित्र रखना. अमंगलीक विचारों शीतकालमें नदियोंक तटपर और पावसकालमें तकको हृदयमें स्थान न देना. वृक्षांके नीचे तपश्चर्या करना, इनमेंसे अनेक (९) अकिंचणं-अकिञ्चन-कोई भी प- नियम वर्तमानमें कोई पालते नहीं हैं, अपने दार्थ ग्रहण नहीं करना. अपने नि- यहां सन्यासियोंका जो धर्म कहा है, वही बहु कट कुछ भी न रखना. तेक जैनशास्त्रोंमें यतियोंको बतलाया है, परतुं (१०) बन्भम्-ब्रह्मचर्य--अर्थात् ब्रह्मचर्य धर्मका पालन करना, इसके विषयमें ' ध्यानाध्ययन करना और ( दाताके घर जैसा मिले ' वैसा शुद्ध आहार लेनेके लिये) अपने हाथहीको जिइतनी कठिन आज्ञा हे कि, जहां-न्होंने पात्र बनाया है और जो अल्प अर्थात् बहुतसे बहुत १६ प्रासतक आहार लेते हैं ऐसे दिगम्बर मुनि तिको बिलकुल जाने तकका नि- उत्तम गतिको जाते हैं. पेध है. (३) पांच घर भिक्षा मांगना और एक जगह ! संग्रह करके खाना ऐसा साधुवाकोलिये नहीं समझना. यतिको भिक्षावृत्तिपर निर्वाह करना पांचों स्वेताम्बरीय साधुलोक (यति इंदिये ही) ऐसा करते है. शक्तिको क्या करना इन्द्रियोंके विषयोंका त्याग अथवा दिगम्बरियोंमें उत्कृष्ट श्रावकके क्षुल्लक अहलक चाहिये और करना, एकबार भोजन कर- : दो भेद हैं उनमेसे क्षुल्लक पंक्तिबंध पांच घरसे भोजन क्या नहीं. ना, क्षौर नहीं कराना. काष्ट लेकर पांचवे घर बैठकर खा सके हैं और साधु तथा पात्रमें भोजन करना. (२) भिक्षा मांगना अहालक (सर्वोत्तम श्रावक) भोजनके समय मौन साध कर वस्तीमें आते हैं. गृहस्थलोग भोजन तैयार होनेके (१) काष्टपात्रमें भोजन करना व काष्टपात्र पास पश्चात् घरके दरवाजेपर बैठकर साधु अहल्लक आदिको रखना स्वेताम्बरी तथा ढूंढिया साधुवोंकी रीति है. भोजन देने के लिये घंटे दो घंटे द्वारापेक्षण करते हैं. दिगम्बरी साधु जीवोंकी रक्षार्थ मयूरपुच्छकी पीछी और दिगम्बरी साधुको देखते ही गृहस्थ नवधाभक्तिपूर्वक सौचार्य जलकलिये कमंडलु रखनेके सिवाय अन्य आहार ग्रहण करनेकी प्रार्थना करता है. इस प्रकार कोई भी परिग्रह नहीं रखते. अहलक वा साधु पांच गृहस्थोंके दरवाजेपर जायगे. (२) घर २ जाके भिक्षा लाना और फिर अ- यदि किसीने नवधाभक्तिपूर्वक नहिं बुलाया तो फिर . न्यत्र खाना यह भी श्वेताम्बरी पद्धति है, दिगम्बरी | उस दिन आहार नहिं लेंगे. बनमें जाकर ध्यान साधु गृहस्थके घर परही जाकर पाणिपात्रमें भोजन | स्वाध्यायमें मग्न हो जायगे क्यों कि पांच घरसे छट्टे करते हैं. यथा घर जानेकी आज्ञा ही नहा हैं. कोई २ साधु 'पहिले गिरिकन्दरदुर्गेषु ये वसन्ति दिगम्बराः। ही घरपर मिक्षा मिलगी तो भोजन करेंगे' इत्यादि पाणिपात्रा:पुटाहारास्ते यान्ति परमांगति॥१॥ अनेक प्रकारकी काठन २ प्रतिज्ञायें करके भी बनसे भो अर्थ-पर्वतकी कंदरामें अथवा गुफावों में रहकर ,जनार्थ निकलते हैं.
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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