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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. है; कोई उसे बौद्ध धर्मका समकालीन कह कर छोड़ता है; और कोलबुक साहिब तथा कितनेक जैन पंडित उसे बौद्धधर्मसे भी पहिलका ठहराते हैं, इन सबोंकी एक वाक्यता करना कठिन है, और प्रत्येक मतमें कहां २ भूल है उसे दिखलाने योग्य विद्वता भी मुझमें नहीं है. तथापि जैन धर्मका का निर्णय करनेमें आवश्यकीय थोडेसे प्रमाण मैं आगे उपस्थित करूंगा, उससे श्रोताओंको अपने २ मत निश्चित करना चाहिये. 1 १२ वासुपूज्य, १३ विमल, १४ अनन्त, १५ धर्म, १६ शांति, १७ कुंथु, १८ अरः १९ मल्लिनाथ, २० मुनिसुव्रत, २१ नमिनाथ, २२ नेमिनाथ ( अरिष्ठनेमि ), २३ पार्श्वनाथ, २४ वर्द्धमानस्वामी ( महावीर ) इससे पहिलेके व अत्यन्त प्राचीन तीर्थंकर ऋषभदेव नैनधर्मके संस्थापक थे ऐसा दिखता है, भागवतके, वें स्कन्धमें ऋषभदेव दिगम्बर होकर जैनधर्मके संस्थापक थे, ऐसा यद्यपि स्पष्ट नहीं लिखा है तौभी उसका उदाहरण देख अर्हत् नामक राजाने पाखंड मतका प्रचार किया ऐसा कहा है. अर्हत् नामका राजा कोई सुना नहीं गया; परन्तु जैनी ऋषभ देव व अर्थ. प्रथम जैनधर्ममें क्या है यह हमें देखना चाहिये, 'आनन्दगिरि - 'जैन' शब्दकीव्युत्पत्ति कृत' 'शंकरविजयमें' 'जैन' शब्दकी व्युत्पत्ति इस प्रकार दी है. -" जीतिपदवाच्यस्य नेति पदेन न पुनर्भवः तस्माज्जन्मशून्याः जैना: ” ! को ही अर्हत कहते हैं यह प्रसिद्ध है. इसपरसे ! ऋषभदेव जैनधर्मके संस्थापक थे, यह सिद्धान्त परन्तु स्वतः जैन लोग इस शब्दको व्युत्पत्ति ! अपनी भागवतसे भी सिद्ध होता है. पार्श्वनाथ निराली देते हैं. वह इस प्रकार -- " रागद्वेषा- जैनधर्मके संस्थापक थे, ऐसी कथा जो प्रसिद्ध दिदोषान् वा कर्मशत्रुञ्जयतीति जिनः तस्या नुयायिनो जैनाः" अर्थात् जिन्होंने काम क्रोधादि अठारह दोषोंको अथवा ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय आदि कर्मशत्रुओंको जीते वे 'जिन' और उनके उपासक वे जैन कहाते हैं. कामक्रोधादि दोषों व कर्म शत्रुओंको जीतनेवाले जिन आजपर्यन्त चौवीस हुए हैं, उन्हें 'तीर्थंकर' ऐसी संज्ञा है. इन चौवीस तीर्थ करोंके नाम ये हैं, ऋषभदेव ( प्रथम जिन अर्थात् तीर्थंकर और जैन धर्मका संस्थापक ), २ अजित, ३ संभव. ४ अभिनन्दन, १ सुमति, ६ पद्मप्रम, ७ सुपा, ८ चन्द्रप्रभ, ९ पुप्पदन्त ( सुविधि ) १० शीतलनाथ, ११ श्रेयान् ' आर्यवि है वह सर्वथा भूल की हुई है. ऐसा कहने में कुछ हरकत नहीं हैं. कोलब्रुक, जॅकोबी सरीखे विद्वान शोधकोंकी समझ ऐसी क्यों हुई सो कह नहीं सत्ते. ऐसे ही वर्द्धमान अर्थात् महावीर भी जैनधर्मके संस्थापक नहीं हैं. तो चौवीस तीर्थंकरोंमेंसे वह एक प्रचारक थे. द्यासुधाकर' ग्रन्थमें इस विषयका उसमें भी उसके विषयमें ' प्रचारयद्धर्मम्' ऐसा कहा है. ये वर्द्धमानस्वामी गौतमबुद्ध के समकालीन थे, वह बौद्धके गुरु थे ऐसा भी अनेकोंका कहना है; कईएक तो ऐसा भी कहनेवाले हैं कि, गौतमबुद्ध मूलमें जैनधर्मी था; परन्तु पीछे उसमें व जैनियोंमें मतभेद पड़नेसे उल्लेख है, चौबीस तीर्थेकर.
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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