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________________ " तुलसी अपने राम को रीझ भजौं कै खीझ । . खेत परे तें जाति हैं उलटे सीधे बीज ||" ( रामायण ) 39 " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी यह शास्त्र वाकू को मर्म जानिलेो भाई भारतवासी || १ || आत्मा सम्बन्ध युक्त है देह से जैसे । देह सम्बन्ध मानो निज भूमि से तैसे । जो तन से, तन मन से, तोरो भ्रम - फांसी ॥ २ ॥ अबतोरी तो देखो बीतो बहुत काल । हाल बेहाल कर अब आयो है सुकाल । अब तो होंस सम्हारो अज्ञान टाग निवारो जग हांसी ॥ ३ ॥ उठो भाई, उठ बैठो, सचेत हो सत्र व । सबही सुपूत कहावत, तुम कहोगे कब | बीतो समय पुनि हाथ न श्रावन, बाढत जात दुःखरासी ॥ ४ ॥ ( एक सन्यासी ) "Breathes there the man with soul so deal Who never to himself hath said This is my own, my native land? Sir Walter Set. होगा नहीं कहीं भी ऐसा, अति दुरात्मा वह प्राणी अपनी प्यारी मातृभूमि है, जिससे नहीं गई जानी । " मेरी जननी यही भूमि है " - इस विचार से जिसका मन नहीं उमङ्गित हुआ— वृथा है, उसका पृथ्वी पर जीवन । ( गौरीदत्त बाजपेयी) है कोई ऐसा नष्ट-हृदय भी इस जग में नरतन धारी जिस्ने निज मन में कभी न यह पद- अवली हो उच्चारी “ यही अहो मेरा स्वदेश है, जन्म भूमि येही प्यारी "? ( श्रीधर पाठक ) ३
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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