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________________ स्वदेशी-आन्दोलन और बारकार। यह होगा, कि हिन्दुस्थानियों को दासत्व ही में अपना सब जीवन व्यतीत करना पड़ेगा। मनू ने स्त्रियों के संबंध में लिखा है--"पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने । पुत्रास्तु स्थाविरे भावे न स्त्री स्वातंत्र्यमहति"। अर्थात् छुटपन में पिता के अधीन, युवावस्था में पति के अधीन और वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रहकर स्त्रियों को अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। उन्हें स्वाधीनता से रहना उचित नहीं । बोध होता है कि, ठीक इसी प्रकार का नियम. सरकारी शिक्षा-प्रणाली के अनुसार, हम लोगों के लिये भी बनाया गया है । इस राजनीति का, नोचे लिखा हुआ, श्लोक ध्यान में रखने योग्य है: __बाल्ये राजगुरुयंता यौवने भूतिदो नृपः । ततः पेन्शनदाता च न हिंदुः प्रभुरात्मनः ।। अर्थात, हिंदुस्थानियों को, बाल्यावस्था में, विद्यार्थी होने के कारण, गुरू के अधीन रहना चाहिए; युवावस्था में, सरकारी नौकर होने के कारण, राजसत्ताधिकारियों के अधीन रहना चाहिए; और वृद्धावस्था में, पेन्शन पाने के कारण, सरकार की निगरानी में रहना चाहिए---कोई हिन्दुस्थानी अपनी आत्मा का प्रभु हो नहीं सकता--वह अपने मन का मालिक, ग्लुदमुख्तार या स्वतंत्र हो नहीं सकता। उसको अपना सारा जीवन दासत्व ही में व्यतीत करना चाहिए । खेद है, अत्यंत शोक है, कि यह बात हमारे देशभाइयों के ध्यान में नहीं पाती ! जो गुरू उक्त नीति के अनुसार हमारे छात्रों को शिक्षा देते हैं वे यथार्थ में हमारे गुरू नहीं हैं। उनकी सहायता की अपेक्षा न करते हुए हम लोगों को अपना कर्तव्य करना चाहिए। ___ क्या हम लोग अपने बालकों को सरकारी या प्राइवेट शालाओं में इस लिये भेजते हैं, कि उनके हृदय में स्वदेशभक्ति का बीज ही न बोया जाय ? जो गुरू पराधीन होकर, स्वार्थ, लोभ, मोह या बुद्धिभ्रंश से हमारे बालकों को राष्ट्रहित और देशभक्ति की शिक्षा नहीं देता उसको हम गुरू नहीं समझते। यदि कोई छात्र ऐसे गुरू की आज्ञा पालन न करे तो वह प्राज्ञाभंग का दोषी हो नहीं सकता।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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